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मन की सहनशीलता का नाम धैर्य है। जीवन में सुख और दुख आते-जाते रहते हैं। सुख को मनुष्य सहज ही बिता लेता है परंतु दुख को हमें सहना पड़ता है। जिस शक्ति के सहारे हम अपना दुखपूर्ण जीवन बिताते हैं, वही धैर्य की शक्ति हमारे पास न हो तो हमारा जीवन दुख से नीचे दब कर एक दिन में चूर-चूर हो जाता है।
मनुष्य के पास अनेक प्रकार के धन हो सकते हैं परंतु सच्चा धन मनुष्य को तभी प्राप्त होता है जब वह सहनशीलता रूपी धन को प्राप्त कर लेता है। धैर्य ही वह धन है जो मनुष्य को महान बनाता है।
जो धैर्य का स्वामी है
वह सब का स्वामी है।''
धैर्य बुद्धि का साथी है। अगर धैर्य और बुद्धि मिल जाए तो मनुष्य आसमान की ऊंचाई को छू सकता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जी ने अपना पूरा जीवन देश हित में लगाया। उनका कहना था कि ''धैर्य वो शक्ति है जो मलबरी वृक्ष के पत्ते को भी रेशम में बदल सकता है।''
धैर्य जीवन की वो कुंज है जो सफलता के ताले को खोलती है। प्रकृति हमें कई माध्यम से धैर्य का पाठ पढ़ाती है। एक नन्हीं सी चींटी सिखाती है कि धैर्य से आगे बढ़ो, मंजिल तक पहुंच ही जाओगे।
आज के युग में हमारी नई पीढ़ी में सहनशीलता का अभाव है। यही एक कारण है कि धैर्य की शक्ति का विकास नहीं हो पा रहा। बच्चों में क्रोध, ईष्र्या, मन में अस्थिरता बढ़ते जा रहे हैं। उनमें धन की कमी होती जा रही है। यही एक कारण उनके जीवन के समस्त क्रम को बिगाड़ रहा है। इसलिए आज के समय में अभिभावकों को बच्चों में सहनशीलता लाने के लिए तरह तरह के तरीके अपनाने चाहिए ताकि बच्चों में बढ़ रही ईष्र्या, क्रोध को कम किया जा सके। अगर बच्चों में ही ईष्र्या और क्रोध की भावना होगी तो उससे उनका चहुंमुखी विकास नहीं हो पाएगा।
हमें एक सच्चे देशवासी होने के कारण अपने बच्चों में यह सहनशीलता का गुण पैदा करना है कि जिससे हमारा देश उन्नति की ओर बढ़े। जिस देशवासियों में सहनशीलता होगी उस देश को प्रगति की राह पर बढ़ने से कोई भी रोक नहीं सकता है।
''धैर्यवान वही है जो दुख में भी मुस्कराता रहे। दुख में घबराना कायरता है, दुख में संतोष की सांस लेना, धैर्यवान का ही काम है।''
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