Pls Help me!! Mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna short story in 150 words
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मज़हब नहीं सिखाता, आपस में वैर रखना।
हिन्दी हैं, हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा।।
ये पंक्तियाँ हैं कवि अलामा इकबाल की, जो उर्दू के प्रसिद्ध शायर थे। उन्होंने ये पंक्तियाँ अपनी एक देश प्रेम की कविता में रची। उनके इन शब्दों से देश के जन जन में देशभक्ति का संचार हुआ और देशवासी साम्प्रदायिकता की भावना से ऊपर उठकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। इन शब्दों में ऐसा जादू भरा था कि प्रत्येक मज़हब के लोग स्वयं को मात्र भारतीय मानते हुए भारतमाता की पराधीनता की बेडि़याँ काटने में संलग्न हो गए। कवि की इन पंक्तियों ने लोगों को मज़हब के वास्तविक अर्थ का ज्ञान कराया।
मज़हब एक पवित्र अवधारणा है। यह अत्यन्त सूक्ष्म, भावनात्मक सूझ, विश्वास और श्रद्धा है। मूलत अध्यात्म के क्षेत्र में ईश्वर, पैगम्बर आदि के प्रति मन की श्रद्धा या विश्वास पर आधारित धारणात्मक प्रक्रिया ही मज़हब है। यह बाहम आडम्बरों, वैर भाव, अन्धविश्वास आदि से ऊपर है। इसी बात को ही इकबाल जी ने कहा है। उनके द्वारा कथित सूक्ति का भी यही अभिप्राय है कि कोई भी धर्म परस्पर वैर रखने को प्रोत्साहित नहीं करता, अपितु परस्पर मेल मिलाप और भाईचारे का सन्देश देता है। मज़हब सिखाता है- लड़ाई झगड़े से दूर रहकर आत्म संस्कार के द्वारा प्राणियों का हित साधना करना। मज़हब स्पष्ट करता है कि भले ही ईश्वर के नाम पृथक हैं और रूप भिन्न हैं, फिर भी वह एक ही है। मज़हब के नाम पर लड़ना मूर्खता है। मज़हब की आड़ में लड़ने वाले अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए इसकी विभिन्न ढंगों से व्याख्या करते हैं।
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