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1. (2) चीं-चीं : चूं-चूं क्या तुम पिंजरे में बंद रह कर परेशान नहीं हो गए ?
चूं-चूं : क्यों नहीं चीं-चीं ? पिंजरे में बंद रह कर जैसे तुम उदास रहती हो वैसे ही मैं भी । पर किया क्या जा सकता है ? हमारा मालिक कभी पिंजरा भी तो नहीं खोलता जो हम झट से उड़ जाएँ ।
चीं-चीं : सच में मुझे मौका मिले तो मैं तो पलक झपकते ही उड़ जाऊँ।
चूं-चूं : पिंजरे से बाहर अपने साथियों को खुले आकाश में
उड़ते देखता हूँ तो बहुत दुखी हो जाता हूँ । वे कैसे कभी इस डाली तो कभी उस डाली उड़-उड़ कर जाते हैं ।
चीं-चीं : सच में । उनकी जो फल खाने की इच्छा होती है उसी बाग़ में पहुँच जाते हैं । अपने पंखों को हवा में लहराते हुए इधर – उधर घुमते हैं और एक हम हैं कि बंद पिंजरे से खुले आकाश का नज़ारा लेते रहते हैं । अब तो घुटन सी होने लगी है ।
चूं-चूं : तुमे देखा था पिछली बार जब बारिश हुई थी तो कैसे हमारे साथी गड्ढे में भरे पानी से खेल रहे थे । हमारे लिए तो अब यह सपना ही हो गया ।
चीं-चीं : अबकी बार जब पिंजरा साफ़ करने के लिए जैसे ही मालिक दरवाज़ा खोलेगा मैं अपनी चोंच से उसकी ऊँगली दबा दूँगी और जैसे ही वो हाथ हटाएगा हम फुर्र से उड़ जायेंगे ।
2. (2) गेंदा : अरे गुलाब,आज तो तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो।
गुलाब: धन्यवाद गेंदा। तुम तो मुझसे भी अधिक खूबसूरत हो।
गेंदा: चल झूठी! झूठ क्यों कहती हो हमारी पूरी पुष्प परिवार में तुम से अधिक खूबसूरत कौन है।
गुलाब: ऐसी बात नहीं है। मैं खूबसूरत हूं परंतु मेरे इन कांटों के वजह से लोगों को चोट पहुंचती है हर बच्चे मेरे पास इसी डर के कारण आते भी कम है। लेकिन तुम तो बहुत भाग्यशाली हो क्योंकि तुम पूजा के काम भी आती हो।
गेंदा: सही है परंतु तुम्हारा रंग कितना सुंदर है तुमसे तो इत्र भी बनता है।
गुलाब: तुम तो औषधि के काम आती हो।
गेंदा: किसी ने सच ही कहा है कि हर एक का अपना अस्तित्व होता है। तुम अपने आप में महत्वपूर्ण हो और मैं अपने आप में।
गुलाब: बिल्कुल सही बात है इसलिए हम जैसे हैं हमें वैसा ही रहना चाहिए।