Pls tell 10 sentence on swami dayanand in Hindi pls tell
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स्वामी दयानंद सरस्वती अपने महान व्यक्तित्व एवं विलक्षण प्रतिभा के कारण जनमानस के हृदय में विराजमान हैं ।
स्वामी दयानंद सरस्वती उन महान संतों में अग्रणी हैं जिन्होंने देश में प्रचलित अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, विभिन्न प्रकार के आडंबरों व सभी अमानवीय आचरणों का विरोध किया । हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता देने तथा हिंदू धर्म के उत्थान व इसके स्वाभिमान को जगाने हेतु स्वामी जी के महत्वपूर्ण योगदान के लिए भारतीय जनमानस सदैव उनका ऋणी रहेगा ।
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म सन् 1824 ई॰ को गुजरात प्रदेश के मौरवी क्षेत्र में टंकरा नामक स्थान पर हुआ था । स्वामी जी का बचपन का नाम मूल शंकर था । आपके पिता जी सनातन धर्म के अनुयायी व प्रतिपालक माने जाते थे । स्वामी जी ने अपनी प्रांरभिक शिक्षा संस्कृत भाषा में ग्रहण की । धीरे-धीरे उन्हें संस्कृत विषय पर पूर्ण र्अधिकार प्राप्त हो गया । बाल्यकाल से ही उनके कार्यकलापों में उनके दिव्य एवं अद्भुत रूप की झलक देखने को मिलती थी ।
स्वामी जी को बाल्यकाल से ही ऐसा वातावरण प्राप्त हुआ जिसमें संपूर्ण देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ता जा रहा था । तत्कालीन भारत विदेशी शासन के अधीन था । अपने देशवासियों के प्रति अमानवीय व्यवहार ने उनके मनोमस्तिष्क को आंदोलित करना प्रांरभ कर दिया । विदेशी दासत्व के अतिरिक्त समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की कुरीतियों एवं अंधविश्वास आदि के वातावरण ने उनके अंतर्मन को झकझोर दिया ।
स्वामी जी ने 21 वर्ष की आयु में ही अपने घर-परिवार का परित्याग कर वैराग्य धारण कर लिया । योग-साधना तथा कठोर तप से पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के लिए वे अपने साधना पथ पर अनेक प्रकार के योगियों, साधु-संतों व महात्माओं से मिले परंतु इनकी जिज्ञासा समाप्त नहीं हुई ।
वे हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि तीर्थ-स्थलों एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों का परिभ्रमण करते रहे । भ्रमण के दौरान ही मथुरा में उनकी महान योगी एवं सन्त विरजानंद जी से मुलाकात हुई । वे उनकी विद्वता से अत्यंत प्रभावित हुए तथा उन्हें अपना गुरु मान लिया ।.......I
स्वामी दयानंद सरस्वती उन महान संतों में अग्रणी हैं जिन्होंने देश में प्रचलित अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, विभिन्न प्रकार के आडंबरों व सभी अमानवीय आचरणों का विरोध किया । हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता देने तथा हिंदू धर्म के उत्थान व इसके स्वाभिमान को जगाने हेतु स्वामी जी के महत्वपूर्ण योगदान के लिए भारतीय जनमानस सदैव उनका ऋणी रहेगा ।
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म सन् 1824 ई॰ को गुजरात प्रदेश के मौरवी क्षेत्र में टंकरा नामक स्थान पर हुआ था । स्वामी जी का बचपन का नाम मूल शंकर था । आपके पिता जी सनातन धर्म के अनुयायी व प्रतिपालक माने जाते थे । स्वामी जी ने अपनी प्रांरभिक शिक्षा संस्कृत भाषा में ग्रहण की । धीरे-धीरे उन्हें संस्कृत विषय पर पूर्ण र्अधिकार प्राप्त हो गया । बाल्यकाल से ही उनके कार्यकलापों में उनके दिव्य एवं अद्भुत रूप की झलक देखने को मिलती थी ।
स्वामी जी को बाल्यकाल से ही ऐसा वातावरण प्राप्त हुआ जिसमें संपूर्ण देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ता जा रहा था । तत्कालीन भारत विदेशी शासन के अधीन था । अपने देशवासियों के प्रति अमानवीय व्यवहार ने उनके मनोमस्तिष्क को आंदोलित करना प्रांरभ कर दिया । विदेशी दासत्व के अतिरिक्त समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की कुरीतियों एवं अंधविश्वास आदि के वातावरण ने उनके अंतर्मन को झकझोर दिया ।
स्वामी जी ने 21 वर्ष की आयु में ही अपने घर-परिवार का परित्याग कर वैराग्य धारण कर लिया । योग-साधना तथा कठोर तप से पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के लिए वे अपने साधना पथ पर अनेक प्रकार के योगियों, साधु-संतों व महात्माओं से मिले परंतु इनकी जिज्ञासा समाप्त नहीं हुई ।
वे हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि तीर्थ-स्थलों एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों का परिभ्रमण करते रहे । भ्रमण के दौरान ही मथुरा में उनकी महान योगी एवं सन्त विरजानंद जी से मुलाकात हुई । वे उनकी विद्वता से अत्यंत प्रभावित हुए तथा उन्हें अपना गुरु मान लिया ।.......I
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