Hindi, asked by Ritiksingh1338, 10 months ago

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Answered by keshithatsgupta28
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Answer:

भारत में जहाँ-जहाँ अंग्रेजों का शासन स्थापित हुआ, वहाँ के लोगों को अंग्रेजी शासन के दुष्परिणाम भोगने पड़े । अत: उन्होंने अंग्रेजों के विरोध में विद्रोह किए । ये विद्रोह किसानों, कारीगरों, आदिवासियों, भिक्षुओं, सैनिकों जैसे विभिन्न वर्गो द्‌वारा किए गए ।

कंपनी सरकार के शासन काल में किसानों का शोषण होने के कारण किसानों में असंतोष व्याप्त हुआ । ई॰स॰ १७६३ से १८५७ के बीच बंगाल में सर्वप्रथम संन्यासियों और उसके पश्चात साधुओं के नेतृत्व में किसानों ने विद्रोह किए । ऐसे ही विद्रोह गुजरात, राजस्थान और दक्षिण भारत में भी हुए ।

भारत के आदिवासियों और वन्य जनजातियों ने भी अंग्रेजी शासन को चुनौती दी । अंग्रेजों के कानूनों के कारण उनके उन अधिकारों पर संकट आया था जो वन संपदा पर आजीविका चलाने के लिए उन्हें प्राप्त थे । छोटा नागपुर क्षेत्र की कोलाम, उड़ीसा की गोंड, महाराष्ट्र की कोली, भील और पिंडारी जनजातियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किए ।

बिहार में संथालों द्‌वारा किया गया विद्रोह इतना जबर्दस्त था कि इस विद्रोह के। कुचलने के लिए अंग्रेजों को कई वर्षों तक सैनिक अभियान चलाना पड़ा । महाराष्ट्र में उमाजी नाईक द्‌वारा किए गए विद्रोह में भी ऐसी ही प्रखरता थी ।

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उमाजी नाईक ने पिंडारियों को संगठित कर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया । उन्होंने एक घोषणापत्र जारी किया । इसके दवारा उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने और अंग्रेजी सत्ता को ठुकराने का आह्वान किया । ई॰स॰ १८३२ में उन्हें फाँसी दी गई । अंग्रेजों के विरोध में कोल्हापुर क्षेत्र के गड़करियों और कोकण में फोंड-सावंतों ने विद्रोह किए ।

अंग्रेजों की दमन नीति के विरुद्ध ई॰स॰ १८५७ के पूर्व देश के विभिन्न भागों में कुछ जमींदारों और राजे-रजवाड़ों ने भी विद्रोह किए । अंग्रेजों की भारतीय सैनिकों ने भी समय-समय पर अपने अधिकारियों के विरोध में विद्रोह किए थे । इन विद्रोहों में ई॰स॰ १८०६ में वेल्लोर में तथा ई॰स॰ १८२४ में बराकपुर में हुए विद्रोहों का स्वरूप अधिक उग्र था ।

यह सच है कि अंग्रेजों के विरोध में हुए इन सभी विद्रोहों का स्वरूप स्थानीय और एकाकी था और इसी कारण अंग्रेज इन विद्रोहों को विफल कर सके परंतु इससे लोगों में व्याप्त असंतोष को केवल दबा दिया गया था; वह असंतोष नष्ट नहीं हुआ था ।

यही कारण है कि जनता के असंतोष की यह दावाग्नि ई॰स॰ १८५७ के विद्रोह के रूप में धधक उठी । जिस प्रकार गोला बारूद के गोदाम पर एक चिनगारी गिरने पर स्फोट होता है उसी प्रकार ई॰स॰ १८५७ में घटित हुआ । भारत के विभिन्न वर्गों में अंग्रेजों के विरुद्ध अब तक संचित असंतोष का विस्फोट अभूतपूर्व सशस्त्र विद्रोह के रूप में हुआ ।

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