Hindi, asked by devanshimody68, 1 day ago

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Answered by itaneja718
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Answer:

स्वतंत्रता पर निबंध: शीर्ष 4 निबंध | Essay on Freedom: Top 4 Essays in Hindi!

Essay # 1. स्वतंत्रता की संकल्पना (Concept of Freedom):

राजनीति के एक सिद्धांत के रूप में ‘स्वतंत्रता’ के दो अर्थ लिए जाते हैं । पहले अर्थ में स्वतन्त्रता को ‘मानवीय अस्तित्व का एक गुण’ माना जाता है जिसका अभिप्राय यह है कि जहाँ प्रकृति के अन्य तत्व-वस्तुएं या जीव-जंतु प्रकृति के निर्विकार नियमों (Immutable Laws) से नियमित होते हैं, वही मनुष्य प्रकृति के नियमों का ज्ञान प्राप्त करके उन्हें अपने उद्देश्यों की पूर्ति का साधन बना लेता है । अतः वह अपनी जीवन को मनचाहा रूप दे सकता है ।

दूसरे अर्थ में स्वतन्त्रता ‘मनुष्य की एक दशा’ है जिसमें मनुष्य स्वयं-निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति में समर्थ होता है और उस पर बाहर से कोई बंधन नहीं लगा होता है । यह बात महत्वपूर्ण है कि स्वतंत्रता की ‘दशा’ का विचार तभी हमारे सामने आता है जब हम मनुष्य में स्वतंत्रता के ‘गुण’ या क्षमता को स्वीकार करके चलते हैं । राजनीति-सिद्धांत का मुख्य सरोकार ‘स्वतंत्रता की दशा’ से है ।

साधारणतः स्वतंत्रता की मांग का आधार ‘मनुष्य का विवेकशील प्राणी’ होना है । इस विचार की व्याख्या करते हुए जे॰आर॰ ल्यूकस ने अपनी पुस्तक ‘The Principles of Politics- 1976’ में लिखा है कि ”स्वतंत्रता का तात्त्विक अर्थ यह है कि विवेकशील लोगों को जो कुछ सर्वात्तम प्रतीत हो, वही कुछ करने में वह समर्थ हो और उसके कार्यकलाप बाहर के किसी प्रतिबंध से न बँधे हों ।”

औपचारिक दृष्टि से, स्वतंत्रता की संकल्पना को ‘प्रतिबंधों का अभाव’ माना जाता है और ऐसी स्वतंत्रता की मांग विवेकशील लोगों के लिए की जाती है । जो सिद्धांत सभी मनुष्यों को समान रूप से विवेकशील मानता है, वह सबको समान स्वतंत्रता देने की मांग करता है परंतु जो सिद्धांत कुछ ही लोगों को विवेकसम्पन्न मानता है, वह इसका विरोध करता है । वास्तव में सच्ची स्वतंत्रता वही है जो सबको समान रूप से प्राप्त हो ।

बार्कर ने ‘Principles of Social and Political Theory -1951’ में स्वतंत्रता के नैतिक आधार पर विशेष बल देते हुए कांट को उद्धृत किया है कि ‘विवेकशील प्रकृति अपने-आप में साध्य है’ (Rational nature exists as an end-in-itself) ।

चूंकि मनुष्य इसी विवेकशील प्रकृति की श्रेणी में आता है, इसलिए मानव मात्र को सदैव एक साध्य मानकर चलना चाहिए, केवल साधन मानकर कभी नहीं चलना चाहिए ।

Explanation:

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Answered by mamtarawat4063
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Same as first answer so do that answer

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