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आज पूरे देश में पाश्चात्य संस्कृति अपनी जड़ें जमा चुकी है। महानगरों या शहरों में नहीं बल्कि गांव की गलियों तक इसका प्रभाव आप देख सकते हैं। ऐसे ही हालत रही तो वह दिन दूर नहीं जब लोग वास्तविक भारत को भूल जाएंगे। आधुनिकता की अंधी दौड़ में आदर्शों का पतन हो रहा है। खुद की संस्कृति से समझौता किया जा रहा है और तो और अब लोग खुद को भी भूलने लगे हैं कि किन परंपराओं और संस्कृतियों के साथ उनका लालन-पालन हुआ। यह विचार शनिवार को न्यू चंगोराभाठा के गणपति नगर में चल रही भागवत कथा में संत गोपालशरण देवाचार्य ने रखे। उन्होंने आगे कहा कि आधुनिकता के साथ आध्यात्मिकता को भी रखा जाना चाहिए। भगवान की कथा को श्रवण कर उसके बताए मार्ग पर चलें।
आजकल चारों तरफ अराजकता का भाव आ गया है क्योंकि लोग आधुनिकता के दौड़ में लगे हुए हैं। जहां भगवान राम का जीवन अनुकरणीय है, वहीं श्रीकृष्ण का जीवन श्रवणीय है। हमें भगवान राम के दिखाए हुए आदर्शों पर चलना चाहिए। वहीं भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की कथा सुनने मात्र से ही प्राणियों का कल्याण हो जाता है। श्रीमद् भागवत कथा ऐसा साधन है, जिससे इंसान को अनंत काल से चले आ रहे जन्म और मृत्यु के काल चक्र से मुक्ति मिल जाती है। वामन अवतार का वर्णन करते हुए गोपालशरण जी ने आगे बताया कि राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगने का वचन लेकर भगवान वामन ने असुरों के आतंक से पृथ्वी को बचाया था।
उन्होंने आगे कहा कि इसके बाद भगवान त्रेतायुग में श्रीराम के रुप में अवतरित हुए और संसार को रावण के त्रास से मुक्त किया। श्रीराम का जीवन अनुकरणीय है। हमें उनके जीवन से जीने का सही तरीका सीखना चाहिए। भगवान ने समय-समय पर लोगों की रक्षा के लिए इस पृथ्वी पर अवतार लिया है। इसके बाद द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण धरती पर स्वयं प्रगट हुए। श्रीकृष्ण की सुंदरता से तो कामदेव भी पराजित हो गए थे। कामदेव के घमंड को चूर करने के लिए भगवान ने निष्काम भावना से गोपियों संग रासलीला की। इसके बाद शनिवार को भगवान का प्रागट्य महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। कथा के दौरान श्रद्धालु भजनों पर झूमते रहे।
रविवार की कथा के बारे में आयोजक उमेश व्यास ने बताया कि रविवार को कंस वध की कथा का वर्णन किया जाएगा।