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ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।
महाकवि संत कबीर जी ने अपने दोहे में कहा है कि हमें ऐसी मधुर वाणी बोलनी चाहिए, जिससे हमें शीतलता का अनुभव हो और साथ ही सुनने वालों का मन भी प्रसन्न हो उठे। मधुर वाणी से समाज में प्रेम की भावना का संचार होता है। जबकि कटु वचनों से हम एक-दूसरे के विरोधी बन जाते हैं। इसलिए हमेशा मीठा और उचित ही बोलना चाहिए, जो दूसरों को तो प्रसन्न करता ही है और आपको भी सुख की अनुभूति कराता है।
Mahakavi Sant Kabir Ji has said in his poem that we should speak such a sweet voice, which gives us a feeling of coolness as well as pleases the listeners. Sweet voice communicates the feeling of love in the society. Whereas we become against each other with harsh words. Therefore, one should always speak sweetly and appropriately, which not only pleases others and also makes you feel happy.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ
कबीर के अनुसार सिर्फ़ मोटी-मोटी किताबों को पढ़कर किताबी ज्ञान प्राप्त कर लेने से भी कोई पंडित नहीं बन सकता। जबकि ईश्वर-भक्ति का एक अक्षर पढ़ कर भी लोग पंडित बन जाते हैं। अर्थात किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी होना आवश्यक है, नहीं तो कोई व्यक्ति ज्ञानी नहीं बन सकता।
According to Kabir ji , one can not become a pundit even by just reading thick books and acquiring book knowledge. Whereas people become pundits even after reading a letter of godly devotion. That is, it is necessary to have practical knowledge along with bookish knowledge, otherwise a person cannot become knowledgeable.