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ok
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पुस्तकें मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वाधिक विश्वसनीय मित्र हैं। इनमें वह शक्ति है जो मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है तथा कठिन से कठिन समस्याओं के निदान के लिए बल प्रदान करती है। जिस व्यक्ति को पुस्तकों से लगाव है वह कभी भी स्वयं को एकाकी व कमजोर अनुभव नहीं कर सकता है। पुस्तकें मनुष्य के आत्म-बल का सर्वश्रेष्ठ साधन हैं। महान देशभक्त एवं विद्वान लाला लाजपत राय ने पुस्तकों के महत्व के संदर्भ में कहाथा: ” मैं पुस्तकों का नर्क में भी स्वागत करूँगा। इनमें वह शक्ति है जो नर्क को भी स्वर्गबनाने की क्षमता रखती है। ” वास्तव में मनुष्य के लिए ज्ञान अर्जन व बुद्धि के विकास के लिए पुस्तकों का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है। शास्त्रों में भी पुस्तकों के महत्व को सदैव वर्णित किया गया है। संस्कृत की एक सूक्ति के अनुसार: ” काव्य शास्त्र विनोदेन, कालो गच्छति धीमताम्। व्यसनेन च मूर्खाणां, निद्रयाकलहेन वा।। ” अर्थात् बुद्धिमान लोग अपना समय काव्य-शास्त्र अर्थात् पठन-पाठन में व्यतीत करते हैं वहीं मूर्ख लोगों का समय व्यसन, निद्रा अथवा कलह में बीतता है। वर्तमान में छपाई की कला में अभूतपूर्व विकास हुआ है। आधुनिक मशीनों के आविष्कार से पुस्तकों के मूल्यों में काफी कमी आई है तथा साथ ही साथ उनकी गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। प्राचीन काल की तुलना में आज पुस्तकें बड़ी सरलता से प्राप्त भी हो जाती हैं परंतु सभी वांछित पुस्तकों को खरीदना व उनका संग्रह जन सामान्य के लिए एक दुष्कर कार्य हे। इन परिस्थितियों में पुस्तकालय का योगदान बहुत अधिक बढ़ जाता है। पुस्तकालय (पुस्तक+आलय) अर्थात् वह स्थान जहाँ पुस्तकें संगृहीत होती हैं। सामान्य रूप से सरकार व समाजसेवी संस्थानों द्वारा खोले गए पुस्तकालयों में व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के तथा पुस्तकालयों के नियमों के अधीन पुस्तकों का लाभ उठा सकते हैं। देश के लगभग समस्त छोटे-बड़े शहरों में इस प्रकार के पुस्तकालय उपलब्ध हैं। कुछ शहरों एवं ग्रामीण अंचलों में चलते-फिरते पुस्तकालय की भी व्यवस्था है जिससे साप्ताहिक क्रमानुसार लोग उक्त सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। सभी प्रमुख विद्यालयों में पुस्तकालय उपलब्ध होते हैं जिनमें संबंद्ध छात्र व अध्यापकगण संगृहीत पुस्तकों का लाभ उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्त कई लोग निजी पुस्तकालय भी रखते हैं जिनमें उनके महत्व व रुचि की पुस्तकें संगृहीत होती हैं। किसी भी समाज अथवा राष्ट्र के उत्थान में पुस्तकालयों का अपना विशेष महत्व है। इनके माध्यम से निर्धन छात्र भी महँगी पुस्तकों में निहित ज्ञानार्जन कर सकते हैं। पुस्तकालय में एक ही विषय पर अनेक लेखकों व प्रकाशकों की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं जो संदर्भ पुस्तकों के रूप में सभी के लिए उपयोगी होती हैं। कुछ प्रमुख पुस्तकालयों में विज्ञान व तकनीक अथवा अन्य विषयों की अनेक ऐसी दुर्लभ पुस्तकें उपलब्ध होती हैं जिन्हें सहजता से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अत: हम पाते हैं कि पुस्तकालय ज्ञानार्जन का एक प्रमुख श्रोत है जहाँ श्रेष्ठ लेखकों के महान व्याख्यानों व कथानकों से परिपूर्ण पुस्तकें प्राप्त की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त समाज के सभी वर्गों- अध्यापक, विद्यार्थी, वकील, चिकित्सक आदि के लिए एक ही स्थान पर पुस्तकें उपलब्ध होती हैं जो संपर्क बढ़ाने जैसी हमारी सामाजिक भावना की तृप्ति में भी सहायक बनती हैं। पुस्तकालयों में मनोरंजन संबंधी पुस्तकें भी उपलब्ध होती हैं। पुस्तकालयों का महत्व इस दृष्टि से और भी बढ़ जाता है कि पुस्तकें मनोरंजन के साथ ही साथ ज्ञानवर्धन में भी सहायक सिद्ध होती हैं। पुस्तकालयों में प्रसाद, तुलसी, शेक्सपियर, प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकारों, कवियों एवं अरस्तु, सुकरात जैसे महान दार्शनिकों और चाणक्य, मार्क्स जैसे महान राजनीतिज्ञों की लेखनी उपलब्ध होती है। इन लेखनियों में निहित ज्ञान एवं अनुभवों को आत्मसात् कर विद्यार्थी सफलताओं के नए आयाम स्थापित कर सकता है। अत: पुस्तकालय हमारे राष्ट्र के विकास की अनुपम धरोहर हैं। इनके विकास व विस्तार के लिए सरकार के साथ-साथ हम सभी नागरिकों का भी नैतिक कर्तव्य बनता है जिसके लिए सभी का सहयोग अपेक्षित है।
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पुस्तकालय स्कूल में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अपनी पुस्तकों के साथ, विभिन्न आयु वर्ग के छात्रों की रुचियों और योग्यता के अनुकूल, अपनी पत्रिकाओं, पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और अपने शांत और शांत वातावरण के साथ, यह उन छात्रों के लिए एक विशेष कॉल है जो वहां जाते हैं और सामग्री पढ़ने के लिए अपनी प्यास बुझाते हैं। जो उन्हें कक्षा कक्ष में प्रदान नहीं किया जा सकता है। यहां उन्हें एक ऐसा वातावरण मिलता है जो आत्म सीखने की आदत के निर्माण के लिए प्रवाहकीय है। पुस्तकालय स्कूल की बौद्धिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र है। स्कूल के काम पर पुस्तकालय का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा है।
पढ़ने की आदत तब पैदा की जा सकती है, जब छात्रों को पढ़ने में अभ्यास मिलता है और शुरुआत में पढ़ने की आदत पक्की हो जाती है, जब छात्रों को वह सामग्री पढ़ने के लिए मिल जाती है, जिसमें उनकी रुचि होती है और उनका ध्यान आकर्षित होता है। क्लास रूम में जो किताबें निर्धारित की गई हैं, वे इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सकती हैं, कुछ छात्र उन सभी पुस्तकों को खरीदने की स्थिति में नहीं हो सकते हैं, जिन्हें वे पढ़ना चाहते हैं, जबकि अन्य को ऐसी पुस्तकें नहीं मिल सकती हैं जो उनके लिए रुचि की हों।
रुचियों में अंतर होता है, अभिरुचि भिन्न होती है, व्यक्तिगत क्षमता छात्रों की पढ़ने की क्षमता में व्यापक भिन्नता प्रस्तुत करती है। पुस्तकालय में प्रत्येक के पास वह है जो वह चाहता है, प्रत्येक उस गति से जाता है जिससे उसकी क्षमताएं उसे जाने देती हैं। इस प्रकार, पुस्तकालय एक सामान्य मंच है जिस पर सभी छात्र समान अवसरों के साथ एक समान स्तर पर मिलते हैं। यह स्कूल के पर्यावरण का केंद्र है, जो स्कूल की बौद्धिक गतिविधियों का केंद्र है।
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