plz answer me fast i can give u brainliest
Answers
Answer:
वृक्षों एवं पर्यावरण का गहरा संबंध है । प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए धरती के 33% भाग पर वृक्षों का होना आवश्यक है । वृक्ष जीवनदायक हैं । ये वर्षा लाने में सहायक होते हैं । धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं । वृक्षों की कृपा से ही भूमि का कटाव रुकता है । सूखा कम पड़ता है तथा रेगिस्तान का .फैलाव रुकता है । वन एवं वृक्ष ध्वनि प्रदूषण भी रोकते हैं । यदि शहरों में उचित अनुपात में वृक्ष लगा दिए जाएं तो प्रदूषण की भयंकर समस्या का समाधान हो सकता है । वनों में लगे वृक्ष ही नदियों, झरनों एवं अन्य प्राकृतिक जल स्त्रोतों के भंडार हैं ।
इसके अतिरिक्त वृक्षों से हमें लकड़ी, फूल-पत्ते, खाद्य-पदार्थ, गोंद तथा अन्य सामान मिलता है । जैसे-जैसे उद्योगों की संख्या बढ़ती जा रही है वैसे–वैसे वृक्षों की संख्या घटती जा रही है । वाहन बढ़ते जा रहे हैं । वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ वृक्षों को आवश्यकता भी बढ़ती जाएगी । इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपना योगदान देना पड़ेगा । अपने घर, मुहल्ले, ग्राम में बड़ी संख्या में पेड़ लगाने होंगे । पेड़-पौधे तो हुमारा -जीवन हैं । हम पेड़-पौधों से हैं, पेड़- पौधे हमसे हैं । पेड़-पौधों के साथ मानव का बहुत पुराना संबंध है ।
Answer:
jहम आज प्रकृति से ज्यों-ज्यों दूर होते जा रहे हैं, अपने लिए मुसीबतें खड़ी करते जा रहे हैं। आज हम प्रगति की राह के राही हैं और प्रगति करते-करते इस मुकाम पर आ पहुंचे हैं, जहां ‘द्रुमों की मृदु छाया और प्रकृति से माया’ तोड़ चुके हैं। अपने विकास के लिए हम लगातार प्रकृति का दोहन करते चले जा रहे हैं, जो हमारे लिए ही विनाशकारी साबित हो रहा है। हम अगर प्रकृति के साथ इसी प्रकार छेड़छाड़ करते रहेंगे तो वह भी हमसे प्रतिशोध लेगी ही।
सौर परिवार में केवल पृथ्वी पर ही पौधों और प्राणियों के विकास के लिए अनुकूल पर्यावरण उपलब्ध है, इसलिए इसे ‘वसुंधरा’ कहा गया है। पृथ्वी पर व्याप्त पर्यावरण प्रकृति का श्रेष्ठ वरदहस्त है। भारत में पर्यावरण के प्रति जागरूकता आदिकाल से रही है, यही कारण है कि यहां पृथ्वी या धरातल को मां, पेड़ों को देवता, जीवों को ईश्वर का अंश एवं जल, वायु और मौसम को भी देवता माना गया है। अब हम वेदों पर नजर डाले तो यज्ञ के महत्व का पता चलता है, जिसमें सभी देवों का आह्वान किया जाता है ताकि वे प्रसन्न रहें और पर्यावरण मानव के अनुकूल रहे तथा मानव-जीवन स्वस्थ, सुखी और समृद्ध रहे। मानव आचरण और अनुभूति से जोड़ने के लिए पर्यावरण को धर्म से जोड़कर देखा गया है। प्राचीनकाल में धर्म ही एकमात्र ऐसा साधन था, जो जन-जन को पर्यावरण के प्रति जागरूक बना सकता था। पीढ़ी -दर पीढ़ी यह प्रक्रिया चलती रही, जिस कारण पर्यावरण संबंधी संकट न्यूनतम थे। अपने हजार वर्ष के सभ्यता काल में पर्यावरण की कोई विकट समस्या नहीं झेलनी पड़ी, जो विगत कुछ सौ वर्षों के तीव्र प्रगतिकाल के दौरान झेलनी पड़ रही है। आज भी गांव का अनपढ़ व्यक्ति पेड़ के प्रति संवेदनशील है, जबकि शहरी आदमी यह संवेदना खो चुका है और कंक्रीट के घने जंगल बनाता जा रहा है। आधुनिक नगर निर्माण के लिए वनस्पतियों का सफाया आज आवश्यक समझा जा रहा है, जबकि प्राचीन भारत के वास्तुकार ‘वाटिका नगर’ (Garden City) की मान्यता पर नगर निर्माण कर पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने का प्रायस करते रहे।
आज का युग विज्ञान और तकनीक के विकास का युग है। इस तकनीक ने आर्थिक-सामाजिक प्रगति को नया आयाम दिया है। कृषि पशुपालन, उत्खनन, परिवहन, उद्योग और सामरिक महत्व के संसाधनों के लिए उच्च तकनीक आवश्यक है। तकनीकी विकास के बल पर आज मानव विकास की जिन ऊंचाइयों को छू रहा है उसकी कल्पना तक कुछ वर्ष पहले नहीं की जा सकती थी। कम्प्यूटर का विकास तकनीक का ऐसा करिश्मा है, जो जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित कर रहा है, लेकिन विज्ञान और तकनीकी विकास का यह युग भयावह दृश्य भी उपस्थित कर रहा है। अधिक ऊर्जा उपभोग से पर्यावरण अवक्रमण जैव-जगत के लिए संकट बनता जा रहा है। आज परिवहन, उद्योग-धंधों के विकास आदि के कारण ध्वनि-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, वायु-प्रदुषण जैसी समस्याएं जन-जीवन को संकटमय बना रही हैं। नोबल शांति पुरस्कार प्राप्त कर चुके पर्यावरणविद डॉ. आर. के. पचौरी का कहना है कि ‘अगर आम आदमी भी ऊर्जा की बचत को अपनी आदत में शुमार कर ले तो काफी हद तक धरती का उद्धार हो सकता है। इसका आसान तरीका यह है कि हर इंसान कुछ संकल्प लेकर आज से ही उन पर अमल शुरू कर दे। इस दिशा में दूसरा जरूरी कदम इंडस्ट्रियल सेक्टर को उठाना है, वह है फ़ैक्टरियों में कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाना। हालांकि कुछ बदलने का इरादा है, लेकिन ज्यादातर उद्योग अभी नींद से नहीं जाग पाए हैं। जाहिर है कि आने वाली पीढ़ियों और हमारी पृथ्वी की सेहत के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।’
आज पर्यावरण से उत्पन्न खतरे इतने भयावह होते जा रहे हैं कि विश्व समुदाय इससे चिंतित हो उठा है और पर्यावरण संतुलन के प्रति लोगों को जागरूक करने के उपाय किए जा रहे हैं। आज पर्यावरण संबंधी जो समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं, वे मानव-जनित हैं। अगर हम आज नहीं चेते तो स्थिति कितनी भयावह होगी, यह पी सुधीर के शब्दों में, पिछले सौ वर्षों में वातावरण में तापमान करीब 1 डिग्री से अधिक बढ़ गया है और तापमान प्रतिवर्ष तीन प्रतिशत की दर से बढ़ता जा रहा है। अगर तापमान बढ़ने की यही गति जारी रही, तो अगले तीस साल में वातावरण का तापमान 2 डिग्री से भी अधिक बढ़ जाएगा। यह होने से पूर्व ही वातावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। गंगा, यमुना आदि नदियां सूख जाएंगी। वहीं दूसरी ओर तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पर जमा बर्फ पिघलकर समुद्र में पहुंचेगा जिससे समुद्र का जल-स्तर बढ़ेगा और तटीय एवं समुद्र तल से नीचे अवस्थित देश-प्रदेश जलमग्न हो जाएंगे।