Hindi, asked by rajninohwar1983, 6 months ago

plz explain fast.

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Answered by Anonymous
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Answer:

Taddhit Pratya in Sanskrit: यः – ‘वह इसका है ‘ अथवा ‘वाला’ अथवा ‘इसमें इन अर्थों में तद्धित से मतुप् प्रत्यय होता है। (कृत् प्रत्यय) इसका ‘मत्’ भाग शेष रहता है, ‘उ’ तथा ‘प्’ का लोप हो जाता है मर्तुप् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुल्लिंग में ‘भगवत्’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘ङीप्’ प्रत्यय जोड़कर ‘नदी’ के समान तथा नपुंसकलिंग में ‘जगत्’ के समान चलते हैं।

तद्धित प्रत्ययाः के भेद-

मत् प्रत्यय

ठन् प्रत्यय

तल् प्रत्यय

Explanation:

Thanks for the question

Answered by uttamsalunkhe671
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Explanation:

प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ‘साथ में, पर बाद में" और अय का अर्थ होता है "चलने वाला", अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला। जिन शब्दों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता वे किसी शब्द के पीछे लगकर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं।

प्रत्यय का अपना अर्थ नहीं होता और न ही इनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व होता है। प्रत्यय अविकारी शब्दांश होते हैं जो शब्दों के बाद में जोड़े जाते है।कभी कभी प्रत्यय लगाने से अर्थ में कोई बदलाव नहीं होता है। प्रत्यय लगने पर शब्द में संधि नहीं होती बल्कि अंतिम वर्ण में मिलने वाले प्रत्यय में स्वर की मात्रा लग जाएगी लेकिन व्यंजन होने पर वह यथावत रहता है।

जैसे :-

समाज + इक = सामाजिक

सुगंध +इत = सुगंधित

भूलना +अक्कड = भुलक्कड

मीठा +आस = मिठास

लोहा +आर = लुहार

नाटक +कार =नाटककार

बड़ा +आई = बडाई

टिक +आऊ = टिकाऊ

बिक +आऊ = बिकाऊ

होन +हार = होनहार

लेन +दार = लेनदार

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