plz give me an 2-3 page essay on dharm ekta ka madhyam hai in hindi
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धर्म किसी भी समाज में संगठन का पर्याय होता है। संगठन की उत्पत्ति ही एकता की भावना से होती है। इस प्रकार धर्म एकता का माध्यम है। खासतौर पर भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में जब राष्ट्रहित की भावना से विभिन्न धर्मों के लोग जब एक साथ खड़े होते हैं तो पूरे विश्व की निगाहें भारत की धार्मिक एकता की मिसाल दी जाती है। हालांकि कुछ विदेशी ताकतों द्वारा भारत मे समय-समय पर धार्मिक कट्टरवाद एवं धार्मिक उन्माद की भावना को बढ़ावा दिए जाने की कोशिशें भी की जाती रही है, लेकिन बहुमत द्वारा ऐसी शक्तियों को विफल किए जाने का प्रयास भी लगातार जारी है। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि धर्म समाज को विघटित करने का प्रयास करता है या यह एकता का माध्यम है। भारत जैसे विशाल देश में जहां हर 50 से 100 किलोमीटर पर मौखिक बोलियां बदल जाती है, लोगों को एकता के सूत्र में बांधे रखने का श्रेय धर्म को ही जाता है और यहां धर्म से हमारा अभिप्राय हिंदु, मुस्लिम, सिख या इसाई नहीं है बल्कि राष्ट्रधर्म है। राष्ट्रधर्म हमें यह सिखाता है कि हम पहले भारतीय हैं और उसके बाद ही हमारा अपना कोई धर्म है जो हमारी जीवन पद्धति को निर्धारित करता है।
भारत जैसे विशाल देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक अगर हम एकजुट हैं तो इसमें धर्म की अहम भूमिका है। भारत की ही तरह पूरे विश्व में लोगों को एकजुट रखने में भी धर्मिक मूल्यों का योगदान है क्योंकि सभी धर्म मनुष्य को एक सूत्र में बांधने का कार्य करते हैं।
महात्मा गांधी के अनुसार “विभिन्न धर्म एक फुलवारी के विभिन्न फूलों की तरह होते है जो विभिन्न रंगों एवं गंधो के होने के बावजूद एक उद्यान के रूप में एकता के सूत्र में बंधे रहते हैं। एक बगीचे में खिले सुन्दर फूलों के समान या एक ही विशाल वृक्ष की अलग-अलग शाखाओं की तरह हैं। उन्होंने कहा हम में अपने ही धर्म की तरह दूसरों के धर्मों के प्रति भी सहज सम्मान का भाव होना चाहिए”।
'सरहदी गांधी' खान अब्दुल गफ्फार खान ने भी मजहब को दुनिया में अमन, प्रेम एवं कौमी एकता का प्रतीक माना है। उन्होंने कहा था कि धर्म या मजहब खुदा के बंदों की सेवा के लिए हैं जिससे वे प्रेम, आपसी सद्भाव एवं भाईचारे के साथ एक दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक रह सकें। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस में भी धर्म को प्रेम, एकता एवं सद्भाव का प्रतीक माना गया है। सिखों के पवित्र धार्मिक ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब विभिन्न धर्मों के बीच एकता का अनूठा उदाहरण है। पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में गुरनानक देव ने सभी धर्म की अच्छाईयों को समाहित किया है।
पैगम्बर मोहम्मद ने भी धर्म को सभी इंसानों की भलाई के लिए एकता स्थापित करने का जरिया माना है। उसी प्रकार संत कबीर एवं रविदास ने भी धर्म की व्याख्या सभी इंसानों की भलाई एवं आपसी भाईचारे एवं एकता के प्रतीक के तौर पर की है। ईसा मसीह ने धर्म को पूरे विश्व में एकता स्थापित करने का साधन माना है। महावीर जैन ने तो सैकड़ों वर्ष पहले ही धर्म को प्राणिमात्र के लिए करुणा, भाईचारे एवं एकता का माध्यम माना है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार धर्म कट्टरवाद एवं संकीर्णतावादी प्रवृत्ति से दूर रहने एवं आपस मे भाईचारे एवं एकता को बढ़ाने में सहायक है।
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‘धर्म एकता का माध्यम है’ पर निबंध 5 (600 शब्द)
पूरी दुनिया में सभ्यता के विकास के साथ ही विभिन्न धर्मों की स्थापना हुई और हरेक धर्म मनुष्य जीवन को नैतिकता, इमानदारी एवं सच्चाई का साथ देते हुए जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। विश्व के लगभग सभी धर्म हमें दूसरों की भलाई करना एवं एक संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। साथ ही, हर धर्म की पूजा पद्धति भी अलग-अलग होती है लेकिन वे सभी अलग-अलग तरीकों से लोगों को एक साथ जुड़े रहने की प्रेरणा देते हैं। अर्थात् सभी धर्मों के मूल में कौमी एकता को प्रोत्साहित करने की भावना का समावेश होता है। दूसरे शब्दों में अगर कहा जाए तो हर धर्म की स्थापना के पीछे एकमात्र उद्देश्य पारस्परिक एकता को बढ़ाना है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर धर्म लोगों को एक साथ मिलकर समाज को बेहतरी के रास्ते पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
मुख्यतः विश्व में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं पारसी आदि प्रमुख धर्म हैं और इन सभी धर्मों का विकास लोगों को एकजुट रखने के लिए ही हुआ है। यह भी सर्वविदित है कि एक धर्म के लोगों के वर्चस्व से जनमत भी तैयार होता है। यही कारण है कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों के धर्म प्रचारक भी हैं जो अपने धर्म के प्रचार में लगे रहते हैं। खुलकर तो लोग धर्म परिवर्तन आदि के मद्दों पर बात नहीं करते लेकिन कहीं न कहीं ज्यादा से ज्यादा लोगों का धर्मंतरण कराना और किसी एक धर्म के लोगों की संख्या बढ़ाना भी इन धर्म प्रचारकों का उद्देश्य होता है। ऐसा मानना है कि एक धर्म के लोगों के बीच एक समान विचारधारा पनपती है और फिर इस समान विचारधारा का प्रयोग राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए किया जाता है। इस एक समान विचारधारा के पीछे भी एकता की भावना ही है। जब एक धर्म विशेष के लोग एक जगह पर इकट्ठा होते हैं तो उनके बीच में वैचारिक एकता सीधे तौर पर परिलक्षित होती है।
मूलतः धर्मों का प्रादूर्भाव एकता की भावना को बढ़ाने के लिए ही हुआ है। लोगों के बीच अगर एकता एवं सामंजस्य न हो तो धर्म की परिकल्पना ही बेमानी हो जाती है। उदाहरण के तौर पर हिंदू धर्म में समय-समय पर कई उपवर्गों का निर्माण होता रहा है। विश्व के चार प्रमुख धर्मों – हिंदू, बौद्ध, जैन तथा सिक्ख की जन्मस्थली के रूप में भारत को जाना जाता है। इन सभी धर्मों की स्थापना का एकमात्र उद्देश्य एक प्रकार की जीवनशैली, वैचारिक सामंजस्य, साझा जीवन पद्धति का विकास एवं सामूहिक एकता के बल पर विकासोन्मुख समाज की स्थापना करना था। उदाहरण के तौर पर
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