Social Sciences, asked by anushka1657, 4 days ago

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Answered by sreyabiswa714
1

wear a cloth around him

mark me as a brainliest plz

Answered by tahira53
0

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जीवन–परिचय

ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्‍म 30 जून 1950 को मुजफ्फरपुर (उत्तर प्रदेश) जिले के बरला गांव में एक अछूत वाल्‍मीकि परिवार में हुआ। उन्‍होंने अपनी शिक्षा अपने गांव और देहरादून से प्राप्‍त की। उनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता। पढ़ाई के दौरान उन्हें अनेक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े।

उनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता । पढ़ाई के दौरान उन्हें अनेक आर्थिक सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े ।

वाल्मीकि जी कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे वहां वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से डॉ.भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया।इससे उनकी रचना–दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ।आजकल वह देहरादून स्थित आप्टो इलेॆक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री (ऑर्डनेंस फैक्ट्रीज, भारत सरकार) में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत है।

उनका मानना है कि दलित ही दलित की पीड़ा को बेहतर ढंग समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। अपने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक लेखन भी किया है। उनकी भाषा सहज तथ्यपूर्ण और आवेगमयी है जिसमें व्यंग्य का गहरा पुट भी दिखता है। नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी आपकी रूचि थी। उनकी आत्मकथा जूठन के कारण उनकी हिंदी साहित्य में पहचान और प्रतिष्ठा मिली । 1993 में डॉ• अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और 1995 में परिवेश सम्मान, सहित्यभूषण पुरस्कार से अलंकृत किया गया।

रचनाएं

हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने लेखन में जातीय अपमान और उत्पीड़न का जीवंत वर्णन किया है और भारतीय समाज के कई अनछुए पहलुओं को पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अस्सी के दशक से लिखना शुरू किया, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में वह चर्चित और स्थापित हुए । 1997 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘जूठन’से। इस आत्मकथा से पता चलता है कि किस तरह विभत्स उत्पीड़न के बीच एक दलित रचनाकर की चेतना का निर्माण और विकास होता है। किस तरह लंबे समय से भारतीय समाज–व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर खड़ी ‘चुहड़ा’ जाति का एक बालक ओमप्रकाश सवर्णों से मिली चोटो–कचोटो के बीच परिस्थितियों से संघर्ष करता हुआ दलित आंदोलन का क्रांतिकारी योद्धा ओमप्रकाश वाल्मीकि बनता है दरअसल ,यह दलित चेतना के निर्माण का दावा दस्तावेज है।

उनकी प्रमुख रचनाएं हैं – सदियों का संताप,बस ! बहुत हो चुका (कविता संग्रह) सलाम , घुसपैठिये (कहानी संग्रह),दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र था जूठन (आत्मकथा)।

भाषा–शैली

उनकी भाषा सहज तथ्यपर और आवेग में ही है उसमें व्यंग्य का गहरा पुट भी दिखता है । नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी उनकी रूचि है आरंभिक जीवन में उन्हें जो आर्थिक सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े उसकी उनके साहित्य में मुखर अभिव्यक्ति हुई है।

उनकी भाषा सहज तथ्यपूर्ण और आवेग यम्मी है जिसमें व्यंग्य का गहरा पूर्व भी दिखता है । नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी आपकी रूचि थी अपनी आत्मकथा जूठन के कारण उनकी हिंदी साहित्य में पहचान और प्रतिष्ठा मिली।

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