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"हमारी संस्कृति दुनिया की संस्कृति का आईना बन सकती है।"
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डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में- ”मेरे विचार से सारे संसार के मनुष्यों की एक ही सामान्य मानव-संस्कृति हो सकती है । यह दूसरी बात है कि वह व्यापक संस्कृति अब तक सारे संसार में अनुभूत और अंगीकृत नहीं हो सकी है ।
विभिन्न ऐतिहासिक परंपराओं से गुजरकर और विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में रहकर संसार के भिन्न-भिन्न समुदायों ने उस महान् मानवीय संस्कृति के भिन्न-भिन्न पक्षों से साक्षात् किया है । नाना प्रकार की धार्मिक साधनाओं, कलात्मक प्रयत्नों और सेवाभक्ति तथा योगमूलक अनुभूतियों के भीतर से मनुष्य उस महान् सत्य के व्यापक और परिपूर्ण रूप को क्रमश: प्राप्त करता है, जिसे हम ‘संस्कृति’ शब्द द्वारा व्यापक करते हैं । यह ‘संस्कृति’ शब्द बहुत अधिक प्रचलित है ।
विभिन्न ऐतिहासिक परंपराओं से गुजरकर और विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में रहकर संसार के भिन्न-भिन्न समुदायों ने उस महान् मानवीय संस्कृति के भिन्न-भिन्न पक्षों से साक्षात् किया है । नाना प्रकार की धार्मिक साधनाओं, कलात्मक प्रयत्नों और सेवाभक्ति तथा योगमूलक अनुभूतियों के भीतर से मनुष्य उस महान् सत्य के व्यापक और परिपूर्ण रूप को क्रमश: प्राप्त करता है, जिसे हम ‘संस्कृति’ शब्द द्वारा व्यापक करते हैं । यह ‘संस्कृति’ शब्द बहुत अधिक प्रचलित है ।
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