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१) अवसर वह अनमोल मोती है, जिसे हड़पने के लिए विध्वंसक व सर्जक सदैव आतुर रहते हैं। यदि अवसर विध्वंसक के हाथ लगता है तो विनाश, महामारी, अराजकता, अनाचार, पीड़ा, दंश, असंतोष और पश्चाताप बनकर जीवन को पीड़ामय बनाता है, लेकिन यदि यह सर्जक के हाथ लगता है, तो आनंद, उत्साह, जिज्ञासा, संतोष, प्रेरणा, हर्ष, ज्ञान, सुख, शांति, सौहार्द, प्रेम व भाईचारे की आधार भूमि बनता है।
२)समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार देश की उन्नति में सबसे बड़ा बाधक तत्व है। इसके वजह से गरीब और गरीब होता जा रहा है। देश में बेरोजगारी, घूसखोरी, अपराध की मात्रा में दिन-प्रतिदन वृद्धि होती जा रही है यह भ्रष्टाचार के फलस्वरूप है।
३)सार्वजनिक रूप से वस्तुओं की श्रेष्ठता और उपादेयता को सिद्ध करने के लिए विचार प्रस्तुत कर माल बेचने की कला बहुत पुरानी है। अंतर केवल यह है कि प्राचीन युग में विज्ञापन अपने इतने वैविध्यमय स्वरूप और बहुआयामी भूमिका में सामने नहीं आया था, जिस तरह वह 21वीं सदी की शुरुआत से पहले आया। आज विज्ञापन की संस्कृति ने व्यापार जगत में अंतःप्रवेश कर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। अब वह व्यापार का अभिन्न हिस्सा है।
४)भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन की स्थापना 15 अगस्त 1969 में की गयी थी।[3] तब इसका नाम 'अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति' (INCOSPAR) था। [4]
भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट,19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। इसका नाम महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था । इसने 5 दिन बाद काम करना बन्द कर दिया था। लेकिन यह अपने आप में भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।
५)आज का युवा वर्ग देश के निर्माण में अपना अहम योगदान डाल सकता है। जिससे देश ओर तरक्की कर सकता है। देश को बाहरी ताकतों से बचाने के लिए व अच्छे राष्ट्र निर्माण के लिए युवा वर्ग की अहम भूमिका होती है। ये बात पंजाब स्टेट ट्रांसमिशन निगम लिमेटिड चंडीगढ़ के डायरेक्टर नीरज तायल ने नेहरू युवा केंद्र मानसा से संबंधित क्लबों को खेल किटें और स्वच्छ भारत अवार्ड वितरित करते हुए कहे।
६)साइबर अपराध एक ऐसा अपराध है जिस में कंप्यूटर और नेटवर्क शामिल है। किसी भी कंप्यूटर का अपराधिक स्थान पर मिलना या कंप्यूटर से कोई अपराध करना कंप्यूटर अपराध कहलाता है। कंप्यूटर अपराध मे नेटवर्क शामिल नही होता है। किसी कि नीजी जानकारी को प्राप्त करना और उसका गलत इस्तमाल करना। किसी की भी निजी जानकारी कंप्यूटर से निकाल लेना या चोरी कर लेना भी साइबर अपराध है।
७)मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है।
in English this mean-:No one is ever defeated until defeat has not been accepted.
८)दूसरों को उपदेश देना बहुत ही आसान है पर जब स्वयं उस पर अमल करने की बात आती है तो असलियत का पता चलता है। ये मानव की प्रवृत्ति होती है कि वो किसी बात के लिये अपने लिये तो अलग मानदंड तय करता है और दूसरों के लिये अलग। हमें इस दोहरे रवैये से बचना चाहिये। किसी को कोई कार्य को करने का उपदेश देने से पहले हमें उसे पहले स्वयं पर लागू करना चाहिये। अक्सर ऐसा होता है कि हमें दूसरों के लिये तो वो कार्य बहुत आसान लगता है हम कहते हैं ये तो बहुत आसान कार्य है मैं तो चुटकियों में कर दूंगा पर जब हम स्वयं उस कार्य को करते हैं तो हमारे पसीने छूट जाते हैं। इसलिये तो कहते हैं कि ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’। दूसरों को उपदेश देना एक अलग बात है स्वयं उस कार्य को करना दूसरी बात है।
९)'शिक्षा' शब्द का अर्थ है-अध्ययन तथा ज्ञान ग्रहण करना। वर्तमान युग में शिक्षण के लिए ज्ञान, विद्या, एजूकेशन आदि अनेक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग होता है। शिक्षा चेतन या अचेतन रूप से मनुष्य की रूचियों समताओं, योग्यताओं और सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, आवश्यकता के अनुसार स्वतंत्रता देकर उसका सर्वागींण विकास करती है। शिक्षा हमारे सोचने, रहने और जीने के ढंग को बदलने में सहायता करती है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली हमें धनी बना सकती है। परन्तु उसमें नीति और संस्कारों का नितांत अभाव मिलता है। इसका स्तर गिर ररहा है। हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति हमें प्रकृति और सभी प्राणियों से संपर्क बनाए रखने में सहायता करती थी। यह संस्कारों, नीतियों और अपने परिवेश को बेहतर समझने में सहायक थी। मनुष्य प्रकृति के बहुत समीप था। परन्तु आधुनिक शिक्षा आज जीविका कमाने का साधन मात्र बनकर रह गई है। संस्कार, नीतियाँ और परंपराएँ बहुत पीछे छूट गए हैं। आधुनिक शिक्षा प्रणाली यथार्थ और व्यवहारिक ज्ञान से बहुत दूर है। यह मात्र आधुनिकता की बात करती है।
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