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rahim
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खैर खून खाँसी खुसी, बैर प्रीति मद पान।
रहिमन दाबे ना दबै, जानत सकल जहान॥
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँडत छोह॥
धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पियत अघाई।
उदधि बडाई कौन है, जगत पियासो जाइ॥
छिमा बडन को चाहिए, छोटन को उतपात।
का रहीम हरि को घटयो, जो भृगु मारी लात॥
मान सहित विष खाय कै, सम्भु भये जगदीस।
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो सीस॥
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोडो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुरै, जुरे गाँठ परि जाय।
रहिमन वे नर मरि चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनते पहलेवे मुये, जिन मुख निकसत नाहिं॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे के लगे, ज्यों मेहंदी को रंग॥
धूर धरत नित शीश पर, कहु रहीम किहिं काज।
जिहि रज मुनि पतनी तरी, सो ढूँढत गजराज॥
कमला थिर न रहीम कहि, यह जानत सब कोय।
पुरुष पुरातन की बधू, क्यों न चंचला होय॥
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, सम्पति सुचहिं सुजान॥
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
जो रहिम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥
टूटे सुजन मनाइए, जो टूटैं सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥
रहिमन प्रीति सराहिये, मिले होत रंग दून।
ज्यों हरदी जरदी तजै, तजै सफेदी चून॥
नैन सलोने अधर मधु, कहि रहीम घटि कौन।
मीठो भावै लोन पर, अरु मीठे पर लौन॥
दीबो चहै करतार जिन्हैं सुख, सो तौ 'रहीम टरै नहिं टारे।
उद्यम कोऊ करौ न करौ, धन आवत आपहिं हाथ पसारे॥
देव हँसैं सब आपसु में, बिधि के परपंच न जाहिं निहारे।
बेटा भयो बसुदेव के धाम, औ दुंदुभी बाजत नंद के द्वारे॥
-रहीम