Plz write the full poem of Rahim Ke Dohe chapter grade 9 in A4 size paper and send it plz take photo plz send it no spam only real i will give 10 points 1 point as a tip no cheating only real
just write the poem and send the photo should be clear not question and answer
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Explanation:
दोहे पाठ सार
प्रस्तुत पाठ में रहीम के ग्यारह दोहे दिए गए हैं, जो हमारे जीवन की किसी न किसी परिस्थिति से जुड़े हुए हैं। पहले दोहे में रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का बंधन किसी धागे के समान होता है, जिसे कभी भी झटके से नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि जब कोई धागा एक बार टूट जाता है तो फिर उसे जोड़ा नहीं जा सकता। उसी प्रकार किसी से रिश्ता जब एक बार टूट जाता है तो फिर उस रिश्ते को दोबारा पहले की तरह जोड़ा नहीं जा सकता।
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दूसरे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि अपने मन की पीड़ा या दर्द को दूसरों से छुपा कर ही रखना चाहिए। क्योंकि जब आपका दर्द किसी अन्य व्यक्ति को पता चलता है तो वे लोग उसका मजाक ही उड़ाते हैं। तीसरे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि एक बार में केवल एक कार्य ही करना चाहिए। एक ही साथ आप कई लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं आता। यह वैसे ही है जैसे किसी पौधे में फूल और फल तभी आते हैं जब उस पौधे की जड़ में उसे तृप्त कर देने जितना पानी डाला जाता है। चौथे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि जब राम को बनवास मिला था तो वे चित्रकूट में रहने गये थे। ऐसी जगह पर वही रहने जाता है जिस पर कोई भारी विपत्ति आती है। पाँचवे दोहे में रहीम जी का कहना है कि उनके दोहों में भले ही कम अक्षर या शब्द हैं, परंतु उनके अर्थ बड़े ही गहरे और बहुत कुछ कह देने में समर्थ हैं। छठे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि कीचड़ में पाया जाने वाला वह थोडा सा पानी ही धन्य है क्योंकि उस पानी से न जाने कितने छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझती है। लेकिन वह सागर का जल बहुत अधिक मात्रा में होते हुए भी व्यर्थ होता है क्योंकि उस जल से कोई भी जीव अपनी प्यास नहीं बुझा पता। सातवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि यदि कोई आपको कुछ दे रहा है तो आपका भी फ़र्ज़ बनता है कि आप उसे बदले में कुछ न कुछ दें। आठवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि कोई बात जब एक बार बिग़ड़ जाती है तो लाख कोशिश करने के बावजूद उसे ठीक नहीं किया जा सकता। यह वैसे ही है जैसे जब दूध एक बार फट जाये तो फिर उसको मथने से मक्खन नहीं निकलता। नवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि बड़ी चीज़ के होने पर किसी छोटी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए। क्योंकि जहाँ छोटी चीज की जरूरत होती है वहाँ पर बड़ी चीज बेकार हो जाती है। जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है वहाँ तलवार का कोई काम नहीं होता। दसवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि आपका धन ही आपको आपकी मुसीबतों से निकाल सकता है क्योंकि मुसीबत में कोई किसी का साथ नहीं देता। अंतिम दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका जीवन जीना व्यर्थ हो जाता है।