Hindi, asked by riuu310, 5 months ago

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Answered by Smith360
3

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sorry I didn't know the answer

Answered by priyanshu4571
1

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आज सारा विश्व प्रदूषण से आक्रान्त है क्योंकि, जनसंख्या का बढ़ता दबाव, आधुनिक औद्योगीकरण की प्रगति तथा इसके कारण वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं की संख्या व प्रजातियों में दिन-प्रतिदिन होने वाली कमी ने पारिस्थितिकीय तन्त्र के असंतुलन को जन्म दिया है। कामयाबी की चकाचौंध के फलस्वरूप पर्यावरण सम्बंधी जागरूकता विकास तथा सभ्यता के बढ़ने के साथ-साथ प्रकृति पर मानव का वर्चस्व बढ़ता गया है, जो आज पर्यावरण के मुख्य आधार वायु, जल, भूमि आदि को प्रदूषित कर मानव जीवन के लिये घातक बन गया है।

पर्यावरण और मानव जीवन का बड़ा ही गहरा सम्बंध रहा है। वास्तव में दैनिक रहन-सहन एवं श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया के फलस्वरूप दोनों एक दूसरे से हर पल, हर क्षण जुड़े रहते हैं। मानव जब असभ्य था तब वह प्रकृति के अनुसार जैविक क्रियाएं करता था और प्राकृतिक सन्तुलन बना रहता था। किन्तु सभ्यता के विकास ने मानव को विलासी बना दिया है। विकास के नाम पर मानव की दानव प्रकृति ने प्राकृतिक सम्पदा को रौंद डाला है।

इस गम्भीर समस्या पर दुनिया का ध्यान पहली बार तब केन्द्रित हुआ जब स्वीडन की राजधानी स्टाक होम में 5-10 जून 1972 को प्रथम संयुक्त राष्ट्र सार्वभौम पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन हुआ और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की विधिवत स्थापना हुई तथा 5 जून को प्रति वर्ष ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाए जाने का निर्णय हुआ। उसके बाद अनेक अध्ययनों और अनुभवों के फलस्वरूप पर्यावरण सम्बन्धी प्रश्न दुनियाँ के विकसित व विकासशील देशों के अति चिन्तनीय विषयों की मुख्य धारा से जुड़ गया। इस दिशा में भारत की गम्भीरता व जागरूकता का पता, ‘धरती संरक्षण कोष’ के उस व्यापक प्रस्ताव से चलता है जो उसने बेलग्रेड गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन और क्वालालम्पुर राष्ट्र मण्डल सम्मेलन में रखा, जहाँ इसे व्यापक समर्थन मिला।

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