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Sarvepalli Radhakrishnan was the first Vice President of India from 1952-1962 and the second President of India from 1962-1967. 2. When he was leaving Mysore University to join the University of Calcutta, his students took him from Mysore University to the station in a carriage which had been decorated with flowers
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=> भारतीय शिक्षा जगत को नई दिशा देने वाले डॉ. राधाकृष्णन का जन्म दक्षिण मद्रास में लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित तिरूतनी नामक छोटे से कस्बे में 5 सितम्बर सन 1888 ई. को सर्वपल्ली वीरास्वामी के घर पर हुआ था। उनके पिता वीरास्वामी जमींदार की कोर्ट में एक अधीनस्थ राजस्व अधिकारी थे। वह विश्व को दिखाना चाहते थे कि मानवता के समक्ष सार्वभौम एकता प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन भारतीय धर्म दर्शन है। उन्होंने कहा था कि मेरी अभिलाषा मस्तिष्कीय गति की व्याख्या करने की है। उन्होंने 1936 में आक्सफोर्ड विवि में तीन वर्ष तक पढ़ाया। यहां पर उन्होंने युद्ध पर व्याख्यान दिया जो विचारात्मक था। 1939 में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयता पर व्याख्यान दिया। इसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो गया और वे स्वदेश लौट आए तथा उन्हें बनारस विवि का उपकुलपति नियुक्त किया गया।
आजादी के बाद उन्हें विश्वविद्यालय आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया तथा वह 1949 में सोवियत संघ में भारत के राजदूत बने। इस दौरान उन्होंने लेखन भी जारी रखा। सन 1952 में डॉ. राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति बने। 1954 में उन्हें भारतरत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया। डॉ. राधाकृष्णन 1962 में राष्ट्रपति बने तथा इन्हीं के कार्यकाल में चीन तथा पाकिस्तान से युद्ध भी हुआ। 1965 में आपको साहित्य अकादमी की फेलोशिप से विभूषित किया गया तथा 1975 में धर्म दर्शन की प्रगति में योगदान के कारण टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं जो उनकी महानता को प्रमाणित करती हैं।
अंत में वे एक बहुत ही महान व्यकित थे और हम उन्हें हमेसा याद रखेंगें.
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