Hindi, asked by nishantjakhar, 9 months ago

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Dharmik manyata par nibandh in hindi not on festivals or dharm it's dharmik manyata plzzz don't copy from Google​

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Answered by manjubala39
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हमारे समाज में कई ऐसी धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं जिनके पीछे मूल कारण धर्म से इतर है फ़िर भी उन्हें धर्म के नाम पर समाज में स्थापित व प्रचलित किया गया है। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य देश-काल-परिस्थितिगत व्यवस्था एवं सामाजिक कल्याण था। आज के सूचना एवं तकनीकी के दौर में हमें इन प्रचलित सामाजिक मान्यताओं के पीछे छिपे मूल कारणों को समझने व अपनी युवा पीढ़ियों को समझाने की आवश्यकता है। जिससे धर्म के प्रति हमारी युवा पीढ़ी का विश्वास बढ़े। वे धर्म को केवल एक रूढ़िवादी विचारधारा ना मानकर सामाजिक व व्यक्तिगत कल्याण के माध्यम के रूप में स्वीकार करें।

आज हम वेबदुनिया के पाठकों विशेषकर युवाओं के लिए ऐसी ही कुछ सामाजिक मान्यताओं के बारे में चर्चा करेंगे जिन्हें समाज में स्थापित तो धर्म के नाम पर किया गया था किन्तु उनमें से अधिकांश के पीछे मूल कारण सामाजिक कल्याण था, वहीं कुछ मान्यताएं अपने पौराणिक आदर्शों के अनुकरण के कारण समाज में स्थापित व प्रचलित हो गईं।

आज हमारे समाज में कई ऐसी धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं जैसे रात्रि में झाड़ू ना लगाना,कांच टूटना,स्वर्ण का खोना,सूतक,गर्भवती स्त्री का नदी पार ना करना,देहरी पर बैठना, पैर पर पैर रखकर नहीं सोना आदि। आज हम इन सभी प्रचलित मान्यताओं के पीछे छिपे मूल कारणों के बारे में आपको अवगत कराएंगे।

1. रात्रि में झाडू ना लगाना- प्राय: रात्रि को झाड़ू लगाना अशुभ माना जाता है। आज भी कई घरों इस नियम का दृढ़ता से पालन किया जाता है। इसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि रात्रि में झाड़ू लगाने से श्री अर्थात् सम्पन्नता चली जाती है। इस नियम के पीछे वास्तविक व मूल कारण प्राचीन समय में बिजली का ना होना है। प्राचीन समय में विद्युत की कोई व्यवस्था नहीं थी, लोग अपने घरों में दीपक,लालटेन इत्यादि से प्रकाश की व्यवस्था किया करते थे, जिनका प्रकाश पर्याप्त नहीं होता था। ऐसे में यदि कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु रात्रि के समय कहीं गिरकर खो जाए तो वह पर्याप्त प्रकाश के अभाव में झाड़ू लगाने से घर के बाहर फ़ेंकी जा सकती थी इसलिए इसे सम्पन्नता की धार्मिक मान्यता से जोड़कर प्राचीन समय में रात्रि में झाड़ू लगाने का निषेध था।

2. कांच का टूटना-कांच का टूटना भी अशुभ समझा जाता है। इसके पीछे वास्तविक कारण व्यक्तिगत कुशल-क्षेम है, क्योंकि कांच टूटकर जब बिखरता है उसके छोटे-छोटे कण यदा-कदा भूमि में दबे रह जाते हैं जो किसी भी सदस्य के हाथ या पैर में चुभ सकते हैं, ध्यान देने योग्य बात यह है कि पहले के घरों में टाईल्स, मार्बल के स्थान पर मिट्टी या गोबर से लीपकर हाथों से भूमि तैयार की जाती थी ऐसे में कांच के टूटने पर उसके टुकड़े घर के सदस्य को चुभकर चोटिल कर सकते हैं क्योंकि कांच के टुकड़े अत्यन्त महीन होते हैं व आसानी से साफ़ करने में नहीं आते इसलिए लोग कांच के टूटने को लेकर अत्यन्त सावधान रहें इसलिए इसे धार्मिक मान्यता से जोड़कर अशुभ बताया गया है।

3. स्वर्ण का खोना- आज भी समाज में सोना गुमना भी अत्यन्त अशुभ माना गया है। इसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि स्वर्ण के खोने से ’श्री’ (समृद्धि) चली जाती है। यह तथ्य सर्वविदित है स्वर्ण अत्यन्त बहुमूल्य वस्तु होता है। यह केवल आकर्षण ही नहीं अपितु श्री; सम्पन्नता का प्रतीक भी है। वहीं स्वर्ण व्यक्ति को आर्थिक संकट के निवारण करने में भी बहुत सहायक होता है। आज भी कई घरों में गंभीर आर्थिक संकट आने पर स्वर्ण-आभूषण गिरवी रखकर धन की व्यवस्था की जाती है। इतनी मूल्यवान वस्तु का खोना आर्थिक हानि का कारण बनता है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए स्वर्ण को अत्यन्त संरक्षित रखने के उद्देश्य से इसे धार्मिक मान्यता के रूप में प्रचलित किया गया है।

4.सूतक-धार्मिक मान्यताओं में सूतक का अहम स्थान है। घर में जब किसी का जन्म हो या किसी की मृत्यु, घर के सदस्यों को सूतक का पालन अनिवार्य होता है। ’सूतक’ के पालन के पीछे मुख्य उद्देश्य स्वच्छता व संक्रमण से रक्षा करना होता है।

5.गर्भवती स्त्री का नदी पार ना करना- गर्भवती स्त्री का नदी पार ना करना अशुभ माना जाता है। प्राचीन समय में चूंकि नदी पर पुल इत्यादि की व्यवस्था नहीं थी यात्रियों को नाव-डोंगे आदि में बैठकर नदी पार करनी होती थी जिसमें दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना बहुत अधिक होती है। गर्भवती स्त्री एवं गर्भस्थ शिशु को इस प्रकार की दुर्घटनाओं से सुरक्षित रखने की दृष्टि से यह धार्मिक मान्यता स्थापित की गई।

6. देहरी पर नहीं बैठना- आज भी कई घरों में देहरी पर बैठना अशुभ समझा जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि देहरी पर बैठने से आयु क्षीण होती है। इसके पीछे कोई ठोस कारण ना होकर केवल हमारी पौराणिक कथा का संदर्भ ही है। भगवान ने नृसिंह अवतार में देहरी पर बैठकर ही हिरण्यकश्यप का वध किया था क्योंकि उसे वरदान था कि वह जल,थल,आकाश,पाताल,घर के अन्दर या बाहर, शस्त्र, व्यक्ति अथवा पशु किसी के मारने से भी नहीं मरेगा। तब भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर देहरी पर बैठकर अपनी जंघाओं पर लिटाकर अपने नखों से ह्रदय विदीर्ण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था। इस मान्यता के अनुसार देहरी पर बैठना आयु के लिए हानिकारक समझा जाता है।

7.पैर पर पैर रखकर नहीं सोना- पैर पर पैर रखकर सोने से भी आयु क्षीण होने की मान्यता है। इसके पीछे भी पौराणिक कथा का ही सन्दर्भ है क्योंकि भगवान कृष्ण के पैर में मणि थी जो सदैव चमकती रहती थी। एक बहेलिए ने जब इस मणि को देखकर किसी हिरण की आंख समझकर तीर चलाया तब श्रीकृष्ण अपने एक पैर पर दूसरा पैर रखे त्रिभंगी मुद्रा में विश्राम कर रहे थे। इस तीर के लगने को निमित्त बनाकर ही भगवान कृष्ण अपने बैकुण्ठ धाम को प्रस्थान कर गए थे। अत: इसी कथा के सन्दर्भ में यह सामाजिक मान्यता प्रचलित हो गई कि पैर पर पैर रखकर सोने से आयु क्षीण होती है।

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