poem ch 4 dophari please answer
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I have written very dirty ....
please mark as brainliest
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[15/05, 08:07] Bhawani Sir: गरमी की दो पहरी मेंतपे हुए नभ के नीचे,काली सड़कें तारकोल की,अंगारे -सी जली पड़ी थी
[15/05, 08:07] Bhawani Sir: छाँह जली थी पेड़ों की भी ,पत्ते झुलस गए थे, नंगे-नंगे दीर्घकाय कंकालों -से वृक्ष खड़े थे,हों अकाल के ज्यों अवतार .
[15/05, 08:10] Bhawani Sir: दोपहरी कविता में गरमी के दिनों के विभिन्न दृश्यों का चित्रण है. उपरोक्त अनुच्छेद में गरमी की दोपहरी में प्रकृति का स्वरूप कैसे रहता है बताया गया है.
[15/05, 08:12] Bhawani Sir: कवि कह रहा है कि इस समय गरमी इतनी तेज है कि पेड़ों के पत्ते सुख कर गिर गए और अगर छाँह भी हो तो वहाँ भी शीतलता नहीं है.
[15/05, 08:14] Bhawani Sir: यहाँ नंगे-नंगे का अर्थ है -पेड़ के सारे पत्ते गिर जाने का कारण वे ठूंठे हो गए हैं
[15/05, 08:15] Bhawani Sir: दीर्घकाय का मतलब - बहुत लंबे-लंबे
[15/05, 08:18] Bhawani Sir: इसप्रकार अर्थ हुआ - गरमी के कारण पत्ते सब झुलस कर गिर जाने के कारण ऐसा दिख रहा था मानों कंकाल खड़े हैं . कारण पत्र ही पेड़ों के कपड़े यानी चर्म हैं. वह निकल जाने से वे कंकाल से दिखने लगे .
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