Poem explanation for the hindi poem tum hamari chotiyon ki barf ko yun mat kuredo by ramnand doshi
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तुम हमारी चोटियों की बर्फ को यूँ मत कुरेदो यह कविता हमें शक्तिबोध कराती है कि हम कितने शक्तिशाली और पराक्रमी हैं। ये एक हुंकार है, दुश्मनों एवं विरोधियों को अपना दम-खम दिखाने के लिए। ये एक ललकार है हमारे दुश्मनों के लिए कि हमसे टकराने की सोचना भी मत नहीं तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा। ये कविता हमारे आत्मविश्वास को प्रबल बनाती है।
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Explanation:
कवि भारत देश के दुश्मनों को सचेत करते हुए कह रहे हैं कि ऐ दुश्मन! हमसे टकराने से पहले ये मत भूलना कि जिन आँधी-तूफानों को देखकर तुम्हारी रूह काँप जाती है, उनमें तो हम खेल-कूदकर बड़े हुए हैं अर्थात हिमालय की गोद में हम हँसते-खेलते बड़े हुए हैं। हमारे रास्ते के काँटे यानी मुश्किलें हमारे साहस के आगे खुद झुक जाती हैं। हम ही हैं जो सागर मंथन करके अमृत को बाहर निकाल लाए। ये मत भूलो कि हम भारतियों के शौर्य का तेज इतना है जिसके आगे सूरज भी शरमा जाता है।
कवि भारत के दुश्मनों से कह रहे हैं कि तुम हमें कमजोर समझने की गलती मत करना। हम वही हैं जिसके एक दहाड़ से समस्त धरती काँप उठी है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर तीन डग में पूरी सृष्टि नाप डाली, हम उन्हीं भगवान विष्णु के अंश हैं। हम उसी सम्राट विक्रमादित्य, अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, पृथ्वीराज चौहान व स्वामी विवेकानंद के वंशज हैं जिन्होंने न सिर्फ भारत में बल्कि संपूर्ण विश्व में भारतीय सभ्यता-संस्कृति और वीरता का डंका बजा दिया था। उनके विजयरथ की धूल उड़कर समस्त विश्व पर अपनी छाप छोड़ आए हैं। सार यह है कि हम उसी भारत देश के वासी हैं, जिसकी सभ्यता और संस्कृति ने समस्त विश्वभर में अपनी अमिट छाप छोड़ी है और अपनी सभ्यता और संस्कृति के कारण हमने विश्वभर में अपना अस्तित्व सबसे ऊँचा बनाया है।
कवि दुश्मनों को चेतावनी देते हुए कहते हैं कि जब-जब हम भारतवासियों की भौहें टेढ़ी हुईं तब-तब अचल पर्वत भी अपने स्थान से डोलने लगे। दसों दिशाओं की रखवाली करनेवाले दिक्पाल और सर्वशक्तिमान गजराज तक डोलने लगे। ओ भारत के दुश्मनो! हमें क्रोध मत दिलाओ। हमारे क्रोध से धरती, आकाश, पाताल और नक्षत्र मंडल भी डोल उठे हैं, बड़े से बड़े अत्याचारी जो घमंड से चूर थे, उनके घमंडी ताज तक हमारे क्रोध से डोल उठे हैं। इसलिए ये बात याद रखना कि यदि हमारे ऊपर क्रोध सवार हो गया तो चारों ओर तहलका मच जाएगा। कोई कितना भी अत्याचारी या आतंकवादी क्यों न हो हम उसे निस्तेनाबूत करके ही छोड़ेंगे।
कवि दुश्मनों को चेतावनी देते हुए कहते हैं कि हम भारतीयों ने अपनी जीत और विजय के गहरे चिह्न पत्थरों पर बनाए हैं, ज्ञान के हर एक क्षेत्र में हमने अपनी ज्ञानरुपी ज्योति के उज्जवल ध्वज को लहराया है। साक्षात काल की अँगड़ाइयों के समान वेगवान जलतरंगों में भी हमारे जलयान निडरता से ठहरे हैं। अर्थात हम इतने साहसी हैं कि समुद्र की उन भयंकर लहरों में जो कि मौत के मुँह में भी ले जा सकती हैं ऐसी लहरों में हमारे युद्धपोत आराम करते हैं। इसलिए ऐ दुश्मन! तुम तो हमसे टकराने के लायक भी नहीं हो।
कवि कहते हैं कि हम भारतवासी मस्त योगियों के समान अपनी ही दुनिया में मस्त हैं। जिस प्रकार एक योगी दूसरों को सुख देकर खुद को सुखी महसूस करता है उसी प्रकार हम भी सबके सुख में अपना सुख समझते हैं। यह गुण हमारे स्वभाव में है कि हम दूसरों के सुख को देखकर सुखी और दूसरों के दुख को देखकर दुखी होते हैं। ओ भारत के दुश्मन! ये बात जान लो कि हमने लास्य और तांडव दोनों प्रकार के नृत्य किए हैं। शंकर जी ने लास्य नृत्य करके सृष्टि का सृजन किया है तो अत्याचार बढ़ने पर
कवि दुश्मनों से कहते हैं कि हमारे देश की इस मिट्टी को चाहे तो धरती माँ का दूध समझो, चाहे चंदन या केसर के समान सुगंधित द्रव्य पदार्थ, जो भी समझना हो समझ लो लेकिन ये बात अच्छी तरह जान लो कि यह मिट्टी हमारे देश की है और हम इसके लिए ही जीते हैं। इसलिए ओ भारत के दुश्मन! तुम हमारी चोटियों की बर्फ को यूँ बार-बार कुरेदकर हमारे जख्मों को हरा मत करो अन्यथा हम शीतल स्वभाव वाले हिमवान की तरह अपने क्रोध की ज्वालामुखी से तुम्हें नष्ट कर देंगे।
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