poem for pani ka janam
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पानी की महिमा धरती पर, है जिसने पहचानी।
उससे बढ़कर और नहीं है, इस दुनिया में ज्ञानी।।
जिसमें ताकत उसके आगे, भरते हैं सब पानी ।
पानी उतर गया है जिसका, उसकी खतम कहानी।।
जिसकी मरा आँख का पानी, वह सम्मान न पाता।
पानी उतरा जिस चेहरे का, वह मुर्दा हो जाता।।
झूठे लोगों की बातें पानी पर खिंची लकीरें।
छोड़ अधर में चल देंगे वे, आगे धीरे-धीरे।।
जिसमें पानी मर जाता है, वह चुपचाप रहेगा।
बुरा-भला जो चाहे कह लो, सारी बात सहेगा।।
लगा नहीं जिसमें पानी, उपज न वह दे पाता।
फसल सूख माटी में मिलती, नहीं अन्न से नाता।।
बिन पानी के गाय-बैल, नर नारी प्यासे मरते।
पानी मिल जाने पर सहसा गहरे सागर भरते।।
बिन पानी के धर्म-काज भी, पूरा कभी न होता।
बिन पानी के मोती को, माला में कौन पिरोता।।
इस दुनिया से चल पड़ता है, जब साँसों का मेला।
गंगा-जल मुँह में जाकर के, देता साथ अकेला।
उनसे बचकर रहना जो पानी में आग लगाते।
पानी पीकर सदा कोसते, वे कब खुश रह पाते।।
पानी पीकर जात पूछते हैं केवल अज्ञानी।
चुल्लू भर पानी में डूबें, उनकी दुखद कहानी।।
चिकने घड़े न गीले होते, पानी से घबराते।
बुरा-भला कितना भी कह लो, तनिक न वे शरमाते।।
नैनों के पानी से बढ़कर और न कोई मोती।
बिना प्यार का पानी पाए, धरती धीरज खोती।।
प्यार ,दूध पानी-सा मिलता है जिस भावुक मन में।
उससे बढ़कर सच्चा साथी, और नहीं जीवन में।।
जीवन है बुलबुला मात्र बस, सन्त कबीर बतलाते।
इस दुनिया में सदा निभाओ, प्रेम-नेम के नाते।।