poem in My cycle in Hindi in 8 to 10 lines
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आज मेरे पौने दो साल के
बेटे ने जब
साइकिल की
ज़िद्द मारी
तो याद आई मुझे
वह अपनी
प्यारी सी लारी
दो पहियों की साइकिल पे
घूमना - घुमाना
वो मस्ती मनाना
न सुनना - सुनाना
सड़क के बीँचों - बींच
कॉलेज को जाना
वो वाहनों का पीछे से
हॉर्न बजाना
साइकिल चलाते हुए गुन - गुनाना
सस्ती सी , अच्छी सी और
टिकायू स्वारी
सच्च में
साइकिल जैसी
नहीं कोई लारी
फिर आया हमारा वह
मोपैएड का ज़माना
अपनी पॉकेट मनी को
पेट्रोल में लूटाना
और फिर बनाना
कोई
अच्छा सा बहाना
पर साइकिल तो साइकिल है
तब हम चलाते थे
लोहे का साइकिल
अब हम चलाते हैं
ज़िंदगी की साइकिल
सच्च में
सुख और दुख
ज़िंदगी की दो पहियों वाली
साइकिल ही तो है
ख़ुशी और ग़म
इस साइकिल की
ब्रेक हैं ..................
दो पहियों की साइकिल तो
चलती ही रहती
साइकिल जैसी
नहीं कोई
दूजी स्वारी
मुझे सच्च में
साइकिल लगे प्यारी - प्यारी
साइकिल से गिर कर
चोट का
मेरी आँख पर
अब भी निशान है
लेकिन सच्च कहूँ तो
साइकिल चलाना
मेरा
अब भी अरमान है
बेटे ने जब
साइकिल की
ज़िद्द मारी
तो याद आई मुझे
वह अपनी
प्यारी सी लारी
दो पहियों की साइकिल पे
घूमना - घुमाना
वो मस्ती मनाना
न सुनना - सुनाना
सड़क के बीँचों - बींच
कॉलेज को जाना
वो वाहनों का पीछे से
हॉर्न बजाना
साइकिल चलाते हुए गुन - गुनाना
सस्ती सी , अच्छी सी और
टिकायू स्वारी
सच्च में
साइकिल जैसी
नहीं कोई लारी
फिर आया हमारा वह
मोपैएड का ज़माना
अपनी पॉकेट मनी को
पेट्रोल में लूटाना
और फिर बनाना
कोई
अच्छा सा बहाना
पर साइकिल तो साइकिल है
तब हम चलाते थे
लोहे का साइकिल
अब हम चलाते हैं
ज़िंदगी की साइकिल
सच्च में
सुख और दुख
ज़िंदगी की दो पहियों वाली
साइकिल ही तो है
ख़ुशी और ग़म
इस साइकिल की
ब्रेक हैं ..................
दो पहियों की साइकिल तो
चलती ही रहती
साइकिल जैसी
नहीं कोई
दूजी स्वारी
मुझे सच्च में
साइकिल लगे प्यारी - प्यारी
साइकिल से गिर कर
चोट का
मेरी आँख पर
अब भी निशान है
लेकिन सच्च कहूँ तो
साइकिल चलाना
मेरा
अब भी अरमान है
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