Poem on Contribution of Sh. Bankim Chandra Chattopadhyay (Chatterjee) in the cultural revival of Bengal in Hindi
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कविता
बंगाल के सांस्कृतिक पुनरुत्थान,
में था बंकिमचन्द्र चटर्जी का उच्च स्थान।
समाज के सुधारक,
धर्म के प्रचारक,
चाहते थे सब हों एक समान,
बंगाल में चलाया साक्षरता अभियान,
सब को प्राप्त हो शिक्षा व ज्ञान,
मिले सबको मान व सम्मान।
सिखाया विदेशियों से न कभी डरो,
स्वाभिमान व आत्म विश्वास के साथ जियो,
जलाकर बंगाल के सांस्कृतिक पुनरुत्थान की ज्योति,
चट्टोपाध्याय जी ने दिये बंगाल के लोगों को अनमोल मोती।
बंगला साहित्यकार बंकिमचंद्र चटर्जी का 'वंदे मातरम' गीत राष्ट्रवाद को भलि-भांति व्यक्त करता है। यह गीत आज भी राष्ट्र की संप्रभुता और एकता का शंखनाद करता है। बंकिम का जन्म उस काल में हुआ जब बंगला साहित्य का न कोई आदर्श था और न ही कोई प्रारूप। बंगला साहित्य पर तब कोई विचार भी मानव मन में नहीं पनपे थे। लिहाजा बंकिम ने साहित्य के क्षेत्र में कुछ कविताएँ लिखकर अपनी उपस्थिति दर्ज की। उनका जन्म 26 जून, 1838 को हुआ और मृत्यु 8 अप्रैल, 1894 को हुई। बंकिम ने 1874 में वन्देमातरम् की रचना की जिसे बाद में आनन्द मठ नामक उपन्यास में शामिल किया गया। वन्देमातरम् गीत को सबसे पहले 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था।