Hindi, asked by monikataneja19pbc17a, 10 months ago

poem on discipline in hindi​

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Answered by Aaloni
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Explanation:

खुद से ज्यादा बोझ उठाकर,

आसमान को लक्ष्य बनाकर।

प्रति पल आगे बढ़ती जाती,

कर्मभाव हमको सिखलाती।

गजब दृढ़ आदर्श हैं उसके,

साथी कभी मार्ग ना भटके।

दृढ़ निश्चय कर वह बलखाती,

प्रेमभाव से पंक्ति बनाती।

प्रति पल आगे बढ़ाती जाती,

कर्मभाव हमको सिखलाती।

लिखे निरंतर ऐसी गाथा,

ठोंक रहा था भूपति माथा।

सदा पराजय उसके हाथ,

मिला उसे चींटी का साथ।

दृढ़ निश्चय कर कदम बढ़ाया,

विजय स्वयं उसके कर आया।

यही मंत्र वह हमें बताती,

लक्ष्य निरंतर उसको भाती।

प्रति पल आगे बढ़ाती जाती,

कर्मभाव हमको सिखलाती।

Answered by jothika24
0

Answer:

चल-चलकर चींटी ना थकती,

करती अनुशासन की भक्ति।

खुद से ज्यादा बोझ उठाकर,

आसमान को लक्ष्य बनाकर।

प्रति पल आगे बढ़ती जाती,

कर्मभाव हमको सिखलाती।

गजब दृढ़ आदर्श हैं उसके,

साथी कभी मार्ग ना भटके।

दृढ़ निश्चय कर वह बलखाती,

प्रेमभाव से पंक्ति बनाती।

प्रति पल आगे बढ़ाती जाती,

कर्मभाव हमको सिखलाती।

लिखे निरंतर ऐसी गाथा,

ठोंक रहा था भूपति माथा।

सदा पराजय उसके हाथ,

मिला उसे चींटी का साथ।

दृढ़ निश्चय कर कदम बढ़ाया,

विजय स्वयं उसके कर आया।

यही मंत्र वह हमें बताती,

लक्ष्य निरंतर उसको भाती।

प्रति पल आगे बढ़ाती जाती,

कर्मभाव हमको सिखलाती

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