poem on Guru Nanak Dev Ji in Punjabi
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1. चशमां-मटन साहिबबिसमिल मारतंड दे कंढे
नाद वजांदा आया,
छुह कदमां दी जिन्द पावणी
डुल्हदी नाल ल्याया,
जाग पए पत्थर ओ मोए
रुल गए पानी जीवे,
नवां जनम दे 'मटन साहब' कर
उज्जल थेह वसायआ,-
सुहण्यां दे सुलतान गुरू
जिन नानक नाम सदायआ,
'ब्रहम दास' पंडत नूं एथे
अरशी नूर दिखया,
चशम 'कमाले' दी चा खुहली
कुदरत-वस्स्या दस्स्या,
ताल विचाले थड़ा बणया
गुर बैठ सन्देस सुणायआ ।
इउं कशमीर जिवाके सुहणा
जा कैलाश नूं चड़्हआ,
पर कशमीर आप ही मुड़के
विच्च तबाही वड़्या ।
सिंघ रणजीत मरद दा चेला
देखो बुक्कदा आया,
मुड़ कशमीर जिवाई बिसमिल
मटन साहब रंग खिड़्या,
धरमसाल-छे बारांदरियां
थड़ा विचाल फबायआ,
जिस ते बैठ 'ब्रहम' दा मूधा
सतिगुर कौल खिड़ायआ ।
'नानक-छुह' दा संग अजे तक
बग़दाद सांभके रख्या,
'नानक-छुह' दा थड़ा बंगला
कशमीर ने भन्न गवायआ ।
2. श्री गुरू नानक देव जी तों
कलियां दी सुगंधि सदक्कड़े !अज्ज नसीम जदों कलियां नूं आ के गल्ल सुणाई:-
'गुर नानक प्रीतम कल आसन, पक्की इह अवाई' ।
सुन कलियां भर चाउ आख्या:-'सहीयो अज्ज न खिड़ना,
कल प्रीतम दे आयां कट्ठी देईए मुशक लुटाई' ।
3. श्री गुरू नानक देव जी तों
नुछावर त्रेल'पौन लुके पाणी' ने सहीयो ! जां इह गल्ल सुन पाई:
'गुर नानक प्रीतम कल आसन, पयार छहबरां लाई' ।
पौन कुच्छड़ों तिलक रात नूं, शबनम रूप बणाके
विछ गया सारा धरती उत्ते:-'चरन धूड़ मुख लाई' ।