poem on jammu and kashmir in hindi
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कश्मीर पर अटल जी की वह कविता जो भुलाए नहीं भूलतीएक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतंत्रता भारत का मस्तक नहीं झुकेगा। त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतंत्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता। औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है।
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कश्मीर पर अटल जी की वह कविता जो भुलाए नहीं भूलती
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतंत्रता भारत का मस्तक नहीं झुकेगा। त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतंत्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता। औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है।
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