POEM ON KHEL KHUD IN HINDI
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HEY THERE.
Here is your answer.
न जाने मैं कब इतनी बड़ी हो गयी,
खेल-कूद, दौड़-भाग को भूल,
जीवन के पतंग की लरी हो गयी
कामकाज को, चाल-ढाल को,
सीख-सीख कर मैं बड़ी हो गयी
अनमनी बेरुखी सी , गुमसुम मुरझाई सी,
किसी पिंजडे की चिड़िया सी ,
मैं ऐसे ही बड़ी हो गयी
मैं कागज की गुड़िया सी, हाथों की कठपुतली सी,
किसी की इज्जत, किसी का मान हो गयी
अपने से दूर, अपने मन से दूर,
न जाने कब परायी हो गयी
चहकना भूल गयी, उड़ना भूल गयी ,
पिंजड़े में बैठी, मैना के जैसी,
आसमान से क्यों लड़ाई हो गयी ?
आज, खेल का नाम सुनकर,
बचपन के समंदर में, गोटा लगाया,
मन को बहकाया, दौड़ाया-भगाया,
फिर से आज खेल में सबको हराया,
कितनो को गिराया, कितनो को हंसाया।
चीखी-चिल्लाई, ठहाके लगाई
ये कौन थी आज बिलकुल समझ न पाई
HOPE U GOT IT.
Here is your answer.
न जाने मैं कब इतनी बड़ी हो गयी,
खेल-कूद, दौड़-भाग को भूल,
जीवन के पतंग की लरी हो गयी
कामकाज को, चाल-ढाल को,
सीख-सीख कर मैं बड़ी हो गयी
अनमनी बेरुखी सी , गुमसुम मुरझाई सी,
किसी पिंजडे की चिड़िया सी ,
मैं ऐसे ही बड़ी हो गयी
मैं कागज की गुड़िया सी, हाथों की कठपुतली सी,
किसी की इज्जत, किसी का मान हो गयी
अपने से दूर, अपने मन से दूर,
न जाने कब परायी हो गयी
चहकना भूल गयी, उड़ना भूल गयी ,
पिंजड़े में बैठी, मैना के जैसी,
आसमान से क्यों लड़ाई हो गयी ?
आज, खेल का नाम सुनकर,
बचपन के समंदर में, गोटा लगाया,
मन को बहकाया, दौड़ाया-भगाया,
फिर से आज खेल में सबको हराया,
कितनो को गिराया, कितनो को हंसाया।
चीखी-चिल्लाई, ठहाके लगाई
ये कौन थी आज बिलकुल समझ न पाई
HOPE U GOT IT.
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