Hindi, asked by samsairhlu, 1 year ago

Poem on Pandit Madan Mohan Malaviya- a true karmyogi in Hindi

Answers

Answered by Divyankasc
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Thank you for your hard work and dedication, 
Hope you're feeling pride and elation. 
Through your enthusiasm you have learned, 
Our appreciation you have earned.

To work with, you're a true pleasure, 
Your growing skills are more than treasure. 
You'd never sit, argue, and complain, 
Thought of your country, not just own gain.

Example to others, a clear sign, 
At the world stage, you know how to shine. 
We just want to thank you again, 
Your achievements are clearly a ten.

Pandit Madan Mohan Malviya sir,
U have done so many in this spur.
A educationalist you are so fine,
You have made our country shine!

Hope it helps...!!!
Answered by TheBrain
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मदन मोहन मालवीय
एक सच्चे कर्मयोगी

‘  बापू, कौन होता है सच्चा कर्मयोगी ?’
पुछा सुभाष ने मुझसे अविदा कहते कहते ‘ 
यह निर्भर करता है, मेरे प्रिय सुभाष’, कहा मैंने
‘ 
हर व्यक्ति, अगर अपने चुने हुए रास्ते पर चले,
 
लेकर एक अटूट संकल्प और दृढ़ निश्चय,
 
तब वह भी बन सकता है एक कर्मयोगी
 
अपने
कट्टरपंथी तरीकों के साथ तुम,
 
अपने
आंदोलनात्मक तरीकों के साथ सरदार,

और शायद मेरी शांतिवादी के साथ मैं भी,
मेरे जीवन मेंमैंने लेकिन, देखा है मात्र एक ऐसा व्यक्त,  
जिन्हें हम सब कहते ‘महमान्य’,
  वे, हैं सच्चे कर्मयोगी ’

क्योंकि उनकी उदासीन प्रकृति से, हम सभी  ने शोक  न करना  सीखा है
और परीक्षणों एवं उनके जीवन के क्लेश से, उन्होंने खुद सीखा है,
क्योंकि शोक व द्वेष संसार न देखे तो ही बेहतर है
एक सच्चा योगी जानता है कि अंतिम परिणाम शायद वह देख न पाए
परन्तु उसके लिए फिर भी नि: स्वार्थ प्रयास करना अनिवार्य है

यह जानते हुए भी, की शायद वह मेहनत का  मीठे फल चक न पायेगा 
सँवारता है वह अपने बगीचे के पेड़ों को
बीज से पौधा और पौधे से वृक्ष तक 
और इस बीच वह यह रूह न करता की शायद वह नहीं देख पायेगा 
भविष्य की पीढ़ियों को महसूस करते हुए, उसके उगाये हुए पेड के फलों का स्वाद

वह होता है सच्चा कर्मयोगी जो त्याग देता है अपना निजी स्वार्थ,
ताकि वो पूर्ण कर पाए अपने परिवार की ज़रूरतें
जो लाध उठता है अन्याय के खिलाफ, अपने देश के खातिर 
जो त्याग कर सकता है अपने अंग अंग को,
ताकि सर न झुकनी पेड उसे मातृभूमि को

‘ मैं जानता हूँ सुभाष, की तुम निकल पेड हो अपने कर्मे पर,
लाने के लिए ब्रिटेन के सम्राज्य को उनके घुटनों पर,
और अपने कर्मे के पथ पर शायद तुम्हे सहने पड़ें कई बाधाएं  
अनादर, अपमान या हो असहनशीलता की तलवार,
 
महामान्य की तरह तुम्हे भी मेरे प्यारे सुभाष चन्द्र,
 
झेल कर इन इन सब कठिनाईयों को,
 
करना होगा सच्चे दिल से अपना धरती पर कर्म
 
तभी तुम भी उनकी तरह, कहलाओगे एक सच्चे कर्मयोगी ’

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