Poem on Role of Pandit Madan Mohan Malaviya in India’s independence movement in Hindi
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मदन मोहन मालवीय
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका
चौरी-चौरा की घटना के पश्चात आरोपीयों का बचाव
अभय मदन के अजय वाणी से
कांप उठी अँगरेज़ हुकूमत
अमर रहेंगे अपालानकर्ता सेनानी
दी जान के बाज़ी जिन्होंने
व्याकुल खड़े थे वे अदलाह में
थी उनके प्रति घृणा पक्षपातपूर्ण न्यायाधीश की
सभी को मृत्युदंड से बचाया मोहन ने
वह सभी, जो थे द्युत शासन के शिकार
“ मैं इनके पस्श में अपनी राय रखूंगा ”
की घोषणा अटल मदन ने “
आपको यह समझाने की नहीं किया अभियुक्तियों ने
कोई ऐसा कार्य जिससे गयी हो जान सैनिकों की
चाहे उन सैनिकों ने किये हों जितने भी हमपे अत्याचार ”
“ क्योंकि जब पूरा राष्ट्र एक ही स्वर में
यह कहता है आपसे, यदि भी हों आप हमसे बलवान
चौरी – चौरा ने दिखा दिया होगा आपको
की आप नहीं कुचल सकते हमारे स्वराज्य का गान ”
“ हम एक राष्ट्र के लिए स्वतंत्र हैं
और रहेंगे सदा सवतंत्र
यह घोषणा इस अदालत में
सिर्फ मैं ही नहीं, मेरा देश कर रहा है ”
तब मोहनदास ने कहा मोहन को
नहीं रहे आप आजे से मात्र मोहन
‘ महामान्य ’ के नाम से
गुणगान करेगा आपका जग सारा
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका
चौरी-चौरा की घटना के पश्चात आरोपीयों का बचाव
अभय मदन के अजय वाणी से
कांप उठी अँगरेज़ हुकूमत
अमर रहेंगे अपालानकर्ता सेनानी
दी जान के बाज़ी जिन्होंने
व्याकुल खड़े थे वे अदलाह में
थी उनके प्रति घृणा पक्षपातपूर्ण न्यायाधीश की
सभी को मृत्युदंड से बचाया मोहन ने
वह सभी, जो थे द्युत शासन के शिकार
“ मैं इनके पस्श में अपनी राय रखूंगा ”
की घोषणा अटल मदन ने “
आपको यह समझाने की नहीं किया अभियुक्तियों ने
कोई ऐसा कार्य जिससे गयी हो जान सैनिकों की
चाहे उन सैनिकों ने किये हों जितने भी हमपे अत्याचार ”
“ क्योंकि जब पूरा राष्ट्र एक ही स्वर में
यह कहता है आपसे, यदि भी हों आप हमसे बलवान
चौरी – चौरा ने दिखा दिया होगा आपको
की आप नहीं कुचल सकते हमारे स्वराज्य का गान ”
“ हम एक राष्ट्र के लिए स्वतंत्र हैं
और रहेंगे सदा सवतंत्र
यह घोषणा इस अदालत में
सिर्फ मैं ही नहीं, मेरा देश कर रहा है ”
तब मोहनदास ने कहा मोहन को
नहीं रहे आप आजे से मात्र मोहन
‘ महामान्य ’ के नाम से
गुणगान करेगा आपका जग सारा
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महामना मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861 - 1946) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे।
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