Poem on soil on hindi please
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निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी,
हर बार बिखेरी गई, किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी!
आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए
सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए,
यों तो बच्चों की गुडिया सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आये तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए!
फसलें उगतीं, फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है
सौ बार बने सौ बर मिटे लेकिन धरती अविनश्वर है।
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है।
विरचे शिव, विष्णु विरंचि विपुल
अगणित ब्रम्हाण्ड हिलाए हैं।
पलने में प्रलय झुलाया है
गोदी में कल्प खिलाए हैं!
कितने रूपों में कुटी-पिटी,
हर बार बिखेरी गई, किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी!
आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए
सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए,
यों तो बच्चों की गुडिया सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आये तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए!
फसलें उगतीं, फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है
सौ बार बने सौ बर मिटे लेकिन धरती अविनश्वर है।
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है।
विरचे शिव, विष्णु विरंचि विपुल
अगणित ब्रम्हाण्ड हिलाए हैं।
पलने में प्रलय झुलाया है
गोदी में कल्प खिलाए हैं!
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