poem on subash chandra bose
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वो था सुभाष, वो था सुभाष वो भी तो खुश रह सकता था महलों और चौबारों में उसको लेकिन क्या लेना था तख्तो-ताज-मीनारों से? वो था सुभाष, वो था सुभाष अपनी मां बंधन में थी जब कैसे वो सुख से रह पाता रणदेवी के चरणों में फिर क्यों ना जाकर शीश चढ़ाता? अपना सुभाष, अपना सुभाष डाल बदन पर मोटी खाकी क्यों न दुश्मन से भिड़ जाता ‘जय-हिन्द’ का नारा देकर क्यों न अजर-अमर हो जाता? नेता सुभाष, नेता सुभाष जीवन अपना दांव लगाकर दुश्मन सारे खूब छकाकर कहां गया वो, कहां गया वो जीवन-संगी सब बिसराकर? तेरा सुभाष, मेरा सुभाष मैं तुमको आजादी दूंगा लेकिन उसका मोल भी लूंगा खूं बदले आजादी दूंगा बोलो सब तैयार हो क्या? गरजा सुभाष, बरसा सुभाष वो था सुभाष, अपना सुभाष नेता सुभाष, बाबू सुभाष तेरा सुभाष, मेरा सुभाष अपना सुभाष, अपना सुभाष
Answer:
है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं
अक्सर दुनिया के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं
लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं
यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है
जो रक्त कणों से लिखी गई,जिसकी जयहिन्द निशानी है
प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत भू का उजियारा था
पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य लिख डाला था
यह वीर चक्रवर्ती होगा , या त्यागी होगा सन्यासी
जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग-युग तक भारतवासी
सो वही वीर नौकरशाही ने,पकड़ जेल में डाला था
पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं फंदे में टिकने वाला था
बाँधे जाते इंसान,कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं
काया ज़रूर बाँधी जाती,बाँधे न इरादे जाते हैं
वह दृढ़-प्रतिज्ञ सेनानी था,जो मौका पाकर निकल गया
वह पारा था अंग्रेज़ों की मुट्ठी में आकर फिसल गया
जिस तरह धूर्त दुर्योधन से,बचकर यदुनन्दन आए थे
जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के,पहरेदार छकाए थे
बस उसी तरह यह तोड़ पींजरा , तोते-सा बेदाग़ गया।
जनवरी माह सन् इकतालिस,मच गया शोर वह भाग गया
वे कहाँ गए, वे कहाँ रहे, ये धूमिल अभी कहानी है
हमने तो उसकी नयी कथा, आज़ाद फ़ौज से जानी है
ᴀᴍᴜ&ᴀᴀʀᴜsʜ ʜᴇʀᴇ