poem on swami Vivekananda
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वेकानंद पर कविता
अंधेरों में रहने वाला,
उजालों की बात कर लूं ,
अपने हॄदय के कोटर में ,
स्वाभिमान भर लूं ।
सोए युवाओं को मैं राष्ट्रीय स्वर दूं ,
डगमग भंवर में नैया पतवार इनको कर दूं ।।
उठो युवाओ – – उठो किशोरों,
तुम्हें राष्ट्र आह्वान दे रहा ।
भारत- मां का मैला आँचल ,
तुम्हें करुण आवाज़ दे रहा ।
देखो सीमाओं पर अपनी ,
चीन-पाक है आँख दिखाता ।
भक्त सिंह का देश आज ,
हाथों में चूड़ी स्वांग रचाता ।
सेनाएं सीमा पर देखो ,
खेल रहीं हैं खूनी होली ।
मगर हमारे दिग्गज नेता ,
सजा रहे भाषण रंगोली ।
राजनीति में सत्ता- लोलुप ,
स्वाभिमान को क्या पहचानें ।
विश्व- पटल पर भारत लज्जित ,
यह तो वोट-बैंक पहचानें ।
उठो विवेकानंद सपूतो ,
भारत- मां के लाल उठो ।
थाम तिरंगे को हाथों में ,
अरि की छाती चीर उठो ।
शक्तिशाली शत्रु को केवल ,
वज्रपात समझा सकता है ।
सेना सर्व श्रेष्ठ है अपनी ,
शासनादेश फुसला सकता है
इच्छा-शक्ति राष्ट्र की दुर्बल
सांप सूंघ गया ज्यों इसको ।
तुम्ही झिंझोडो युवा शक्ति बन
संजीवनी- वोट से इसको ।
कर्णधार स्वाभिमान को भूले,
राणा प्रताप की याद दिलाओ
इतिहास भूल बैठे हैं नेता ,
आजादी का पाठ पढ़ाओ ।
भारत- मां के युवा सपूतों ,
विवेकानंद की नव आशाओं।
सौगंध आर्य संस्कृति की तुमको ,
घर-घर वैदिक संस्कृति लाओ
हम हिन्दू हैं कहो गर्व से ,
निज भाषा हिन्दी अपनाओ ।
ग्राम- वासिनी भारत – माता ,
वहां ज्ञान के दीप जलाओ ।
विवेकानंद की पुण्यतिथि पर,
भारत को उत्कृष्ट बनाओं ।
उनके सपनों के भारत की ,
ध्वजा पथिक जग में फहराओ ।।