Poem on Swami Vivekananda‟s views on character development of youth in India in Hindi
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सव्मी विवेकानंद – मनुष्य के चरित्र का विकास
(नरेन्द्रनाथ दत्त और उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंसा के बीच काल्पनिक वार्तालाप)
“गुरुदेव मुझे शंका हो रही है अपने पर,
के यदि में सत्य और धर्म की खोज में,
कहीं इतना खो जाऊं, की मुझे मेरे,
आँखों के सामने ठहरे ज्ञान दिखाई न दे?”
“मेरे प्रिय नरेंद्र यह तुम्हारे मन का भ्रम है
क्योंकि अगर तुम सत्य के मार्ग पर चल रहे हो,
तो तुम्हे भी मेरी तरह इश्वर का दर्शन हर कहीं,
हर पल होगा, और तुम्हारे प्रश्नों के मिलेंगे उत्तर”
“गुरुदेब क्या आप इश्वर को देख सकते हैं?”
“बिलकुल नरेन्द्र, उसी तरह जैसे मैं तुमको देख रहा हूँ”
नरेन्द्रनाथ ने अपने गुरु के चरण-स्पर्श करते हुए पुछा :
“मेरे लिए जीवन में क्या आदेश है आपका गुरुदेव?”
“अपने आप को इश्वर की भक्ति में संपन्न कर दो नरेंद्र
तभी होगा पूर्ण तः, तुम्हारे चरित्र का विकास” I
(नरेन्द्रनाथ दत्त और उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंसा के बीच काल्पनिक वार्तालाप)
“गुरुदेव मुझे शंका हो रही है अपने पर,
के यदि में सत्य और धर्म की खोज में,
कहीं इतना खो जाऊं, की मुझे मेरे,
आँखों के सामने ठहरे ज्ञान दिखाई न दे?”
“मेरे प्रिय नरेंद्र यह तुम्हारे मन का भ्रम है
क्योंकि अगर तुम सत्य के मार्ग पर चल रहे हो,
तो तुम्हे भी मेरी तरह इश्वर का दर्शन हर कहीं,
हर पल होगा, और तुम्हारे प्रश्नों के मिलेंगे उत्तर”
“गुरुदेब क्या आप इश्वर को देख सकते हैं?”
“बिलकुल नरेन्द्र, उसी तरह जैसे मैं तुमको देख रहा हूँ”
नरेन्द्रनाथ ने अपने गुरु के चरण-स्पर्श करते हुए पुछा :
“मेरे लिए जीवन में क्या आदेश है आपका गुरुदेव?”
“अपने आप को इश्वर की भक्ति में संपन्न कर दो नरेंद्र
तभी होगा पूर्ण तः, तुम्हारे चरित्र का विकास” I
sweetypandu5:
Thanks a lot
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