poem on vaayu in hindi with summary
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चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हवा,
डालियों को यों चिढाने-सी लगी,
आंख की कलियां, अरी, खोलो जरा,
हिल स्वपतियों को जगाने-सी लगी,
पत्तियों की चुटकियां झट दीं बजा,
डालियां कुछ ढुलमुलाने-सी लगीं।
किस परम आनंद-निधि के चरण पर,
विश्व-सांसें गीत गाने-सी लगीं।
जग उठा तरु-वृंद-जग, सुन घोषणा,
पंछियों में चहचहाट मच गई,
वायु का झोंका जहां आया वहां-
विश्व में क्यों सनसनाहट मच गई?
डालियों को यों चिढाने-सी लगी,
आंख की कलियां, अरी, खोलो जरा,
हिल स्वपतियों को जगाने-सी लगी,
पत्तियों की चुटकियां झट दीं बजा,
डालियां कुछ ढुलमुलाने-सी लगीं।
किस परम आनंद-निधि के चरण पर,
विश्व-सांसें गीत गाने-सी लगीं।
जग उठा तरु-वृंद-जग, सुन घोषणा,
पंछियों में चहचहाट मच गई,
वायु का झोंका जहां आया वहां-
विश्व में क्यों सनसनाहट मच गई?
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Explanation:जब से हुआ विज्ञान प्रबल
तब से हुआ वायु बदहाल
वाहन सब ईंधन से दौड़ते
धुआं छोड़ हवा को बिगाड़ते
शहर गांव का है बुरा हाल
मत पूछो भाई प्रदूषण का हाल
दमें से हैं कई बीमार
दूषित वायु की है मार
पेड़ बेचारे हैं मददगार
उनको काट कर हम बेकार
आओ मिलकर करें कुछ उपचार
लगाए पेड़ पौध हम घर-बाहर
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