Poem on vatsalya ras.............????
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वात्सल्य कविता के संबंध में एक ही नाम मुख पर बार-बार आता है वह है सूरदास जो अंधे होते हुए भी वात्सल्य रस के किसी भी भाव से दूर रहें। वह बंद आंखों से वात्सल्य का कोना झांक आए थे।
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥
दाऊ कृष्ण को चिढ़ाते हैं कि तुम को तो कोई प्यार नहीं करता है।
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥
किलकत कान्ह घुटुरूवनि आवत।
मनिमय कनक नंद कैं आँगन, बिम्ब पकरिबैं धावत।।
कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौं, कर सौं पकरन चाहत।
किलकि हंसत राजत द्वै दतियाँ, पुन-पुन तिहिं अवगाहत।।
कनक-भूमि पर कर-पग-छाया, यह उपमा इक राजति।
प्रतिकर प्रतिपद प्रतिमान वसुधा, कमल बैठकी साजति।।
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति।
अंचरा तर लै ढांकि, सूर के प्रभु कौं दूध पियावति।।
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥
दाऊ कृष्ण को चिढ़ाते हैं कि तुम को तो कोई प्यार नहीं करता है।
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥
किलकत कान्ह घुटुरूवनि आवत।
मनिमय कनक नंद कैं आँगन, बिम्ब पकरिबैं धावत।।
कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौं, कर सौं पकरन चाहत।
किलकि हंसत राजत द्वै दतियाँ, पुन-पुन तिहिं अवगाहत।।
कनक-भूमि पर कर-पग-छाया, यह उपमा इक राजति।
प्रतिकर प्रतिपद प्रतिमान वसुधा, कमल बैठकी साजति।।
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति।
अंचरा तर लै ढांकि, सूर के प्रभु कौं दूध पियावति।।
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what is this.
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