Poem on vatsalya ras in hindi
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शाही शान भिखारिन की है मनोकामना मतवाली
ii) बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति
iii) सन्देश देवकी सों कहिए
हौं तो धाम तिहारे सुत कि कृपा करत ही रहियो
तुक तौ टेव जानि तिहि है हौ तऊ, मोहि कहि आवै
प्रात उठत मेरे लाल लडैतहि माखन रोटी भावै
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Answer:
वात्सल्य रस कविता
इस कविता में यशोदा जी अपने पुत्र श्री कृष्ण के लिए प्यार का वर्णन किया है |
कपट करि ब्रजहिं पूतना आई
अति सुरूप विष अस्तन लाए, राजा कंस पठाई
कर गहि छरि पियावति, अपनी जानत केसवराई
बाहर व्है के असुर पुकारी, अब बलि लेत छुहाई
गई मुरछाह परी धरनी पर, मनौ भुवंगम खाई।
इस कविता में यशोदा जी अपने पुत्र श्री कृष्ण के लिए प्यार का वर्णन किया है | माँ के अपने पुत्र के प्रति वात्सल्य का प्रतिनिधित्व करते हैं - यशोदा जी श्री कृष्ण को पालने में झुला रही हैं और उनको हिला-हिला कर दुलराती हुई कुछ गुनगुनाती भी जा रही हैं जिससे कि कृष्ण सो जाएं।
वात्सल्य रस का स्थायी भाव वात्सल्यता होता है। इस रस में बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम,माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम,गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम आदि का वर्णन किया जाता है। यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है।
वात्सल्य रस उदाहरण
माँ का बेटे से प्यार