poems on clouds in hindi
बादल राग (सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’)
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर !
राग-अमर ! अम्बर में भर निज रोर !
झर झर झर निर्झर–गिरी-सर में,
घर, मरू तरू-मर्मर, सागर में,
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में
मन में, विजन-गहन-कानन में,
आनन-आनन में, रव घोर कठोर-
राग-अमर ! अम्बर में भर निज रोर !
अरे वर्ष के हर्ष !
बरस तू बरस-बरस रसधार !
पार ले चल तू मुझको
वहाँ, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार !
(contd.)
उथल-पुथल कर ह्रदय-
मचा हलचल-
चल रे चल-
मेरे पागल बादल !
धँसता दलदल,
हँसता है नद खल खल
बहता, कहता कुलकुल कलकल कलकल !
देख-देख नाचता ह्रदय
बहने को महा विकल बेकल,
इस मरोर से- इसी शोर से-
सघन घोर गुरु गहन रोर से
मुझे गगन का दिखा सघन वह छोर !
राग-अमर ! अम्बर में भर निज रोर !
***
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झणी मचली!
मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली!
मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!
(contd.)
पथ न मलिन करता आना,
पद चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन हो अंत खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी कल थी मिट आज चली!
(महादेवी वर्मा)
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1
vistrat nabh ka koyi kona,
apna kabhi na jag mein hona,
umdee kal thii , mitt aaj chalee,
main neer bharee dukh kii badlee.
(Mahadevi Verma)
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You could also check for Hindi translations from Kalidas' "Meghdoot" !
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