Hindi, asked by nikhilroyn9875, 1 year ago

Points to write an essay:

Vishwa Shanti Aur Eakta.(in hindi)

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Answered by kelost
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वर्तमान युग आपाधापी का युग है जहाँ न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर वरन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति व एकता  नदारद है| मनुष्य की अति महत्वाकांक्षा ने उसे परमाणु आयुधों के ढेर पर खड़ा कर रखा है जहाँ कभी भी विस्फोट हो सकता है| भारतीय संस्कृति का मूल सिद्धांत है ‘उदारचरितानाम वसुधैव कुटुम्बकम|’  हम इस तथ्य को नकार नहीं सकते की आज इस सिद्धांत को व्यवहार में लाने की सबसे ज्यादा जरूरत है| ये विश्व दो महायुद्धों को झेल चुका है और ये सर्वविदित है कि अगर तृतीय महायुद्ध होता है तो पृथ्वी से मानवता का नामो-निशान तक मिट जायेगा| क्योंकि सभी राष्ट्र परमाणुसमपन्न है| संयुक्त राष्ट्र संघ अस्तित्व में है| ये प्रमाण है कि  सभी शांति चाहते है| चलिए हम विस्तृत चर्चा करेंगे कि विश्व शांति के पथ में आने वाली मुख्य बाधाएं कोनसी है| आतंकवाद, नक्सलवाद और परमाणु बमों के निर्माण में बढ़ोतरी| अब प्रश्न ये उठता है कि आतंकवाद क्यों पनपा और और क्यों तीव्र गति से बढ़ रहा है| इसका मुख्य कारण है लोगों में बढती असंतुष्टि की भावना| कोई भी भीतर से शांत नहीं है|

अति महत्वाकांक्षा और होड़ ने सबको अपना शिकार बना रखा है| लोग भौतिकवाद में अपना सुख-शांति खोज रहे है| मांगे पूरी न होने पर वे हिंसा का सहारा लेते है| महात्मा बुद्ध के अनुसार शांति का निवास स्थान हमारे भीतर है; उसे बाहर खोजना व्यर्थ है|

जब हम खुद से असंतुष्ट है तो हमारी व्यक्तिगत शांति छिन जाती है| ठीक इसी तरह जब कोई राष्ट्र अपनी स्थिति से असंतुष्ट होने पर अन्य  राष्ट्रों से होड़ व प्रतिस्पर्धा करता है; खुद को स्थापित करने के लिए अनुचित साधन अपनाता है तो वह विश्व शांति पर एक प्रश्नचिह्न बन जाता है| वर्तमान में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमुक समुदाय के लोगो के अमेरिका प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है| कोई भी निर्णय किसी कारणवश होता है| इस्लामिक आतंकवाद अपनी जड़े गहरी करके विश्व शांति के लिए चुनौतियां खड़ी कर रहा है| अब हम उन उपायों पर दृष्टि डालेंगे जो विश्व शांति और एकता में सहायक हो सकते है| सर्वप्रथम प्रत्येक राष्ट्र को कृतसंकल्प होना होगा कि वे विश्व शांति में निमित्त बनेंगे| इसके लिए वे अनुचित महत्वाकांक्षा का परित्याग कर देंगे|

सामूहिक परिचर्चा व वैचारिक आदान-प्रदान द्वारा शांति के साधन अपनाएंगे| समस्त विश्व को अपना मानने की भावना विकसित करेंगे| विकसित राष्ट्र अल्पविकसित राष्ट्रों का सहयोग करेंगे न कि उनके अस्तित्व पर खतरा बनेंगे| परमाणु आयुधों का प्रयोग कतई नहीं करेंगे| इस प्रकार विश्व शांति और एकता संभव हो पायेगी|
Answered by RohitDeshmukh
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विश्व शांति

विश्व शांति सभी देशों और/या लोगों के बीच और उनके भीतर स्वतंत्रता, शांति और खुशी का एक आदर्श है। विश्व शांति पूरी पृथ्वी में अहिंसा स्थापित करने का एक माध्यम है, जिसके तहत देश या तो स्वेच्छा से या शासन की एक प्रणाली के जरिये इच्छा से सहयोग करते हैं, ताकि युद्ध को रोका जा सके। हालांकि कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग विश्व शांति के लिए सभी व्यक्तियों के बीच सभी तरह की दुश्मनी के खात्मे के सन्दर्भ में किया जाता है।

संभावनासंपादित करें

जबकि विश्व शांति सैद्धांतिक रूप से संभव है, कुछ का मानना है कि मानव प्रकृति स्वाभाविक तौर पर इसे रोकती है।[1] यह विश्वास इस विचार से उपजा है कि मनुष्य प्राकृतिक रूप से हिंसक है या कुछ परिस्थितियों में तर्कसंगत कारक हिंसक कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे। [2]

तथापि दूसरों का मानना है कि युद्ध मानव प्रकृति का एक सहज हिस्सा नहीं हैं और यह मिथक वास्तव में लोगों को विश्व शांति के लिए प्रेरित होने से रोकता है।[3]

विश्व शांति के सिद्धांतसंपादित करें

विश्व शांति कैसे प्राप्त की जा सकती है, इसके लिए कई सिद्धांतों का प्रस्ताव किया गया है। इनमें से कई नीचे सूचीबद्ध हैं। विश्व शांति हासिल की जा सकती है, जब संसाधनों को लेकर संघर्ष नहीं हो। उदाहरण के लिए, तेल एक ऐसा ही संसाधन है और तेल की आपूर्ति को लेकर संघर्ष जाना पहचाना है। इसलिए, पुन: प्रयोज्य ईंधन स्रोत का उपयोग करने वाली प्रौद्योगिकी विकसित करना विश्व शांति हासिल करने का एक तरीका हो सकता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

विभिन्न राजनीतिक विचारधाराएंसंपादित करें

दावा किया जाता है कि कभी-कभी विश्व शांति किसी खास राजनीतिक विचारधारा का एक अपरिहार्य परिणाम होती है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के मुताबिक "लोकतंत्र का प्रयाण (मार्च) विश्व शांति का नेतृत्व करेगा."[4] एक मार्क्सवादी विचारक लियोन त्रोत्स्की का मानना है कि विश्व क्रांति कम्युनिस्ट विश्व शांति का नेतृत्व करेगी। [5]

लोकतांत्रिक शांति सिद्धांतसंपादित करें

विवादास्पद डेमोक्रेटिक शांति सिद्धांत के समर्थकों का दावा है कि इस बात के मजबूत अनुभवजन्य साक्ष्य मौजूद हैं कि लोकतांत्रिक देश कभी नहीं या मुश्किल से ही एक-दूसरे के खिलाफ युद्ध छेड़ते हैं।[6](केवल अपवाद हैं कोड युद्ध, टर्बोट युद्ध और ऑपरेशन फोर्क). जैक लेवी (1988) बार-बार- जोर दे कर यह सिद्धांत बताते हैं कि "चाहे कुछ भी हो, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में हमें एक व्यवहारिक कानून की आवश्यकता है".

औद्योगिक क्रांति के बाद से लोकतांत्रिक बनने वाले देशों में वृद्धि हो रही है। एक विश्व शांति इस प्रकार संभव है, अगर यह रुझान जारी रहे और अगर लोकतांत्रिक शांति सिद्धांत सही हो।

हालांकि इस सिद्धांत के कई संभव अपवाद है।

पूंजीवादी शांति सिद्धांतसंपादित करें

अपनी "कैपिटलिज्म पीस थ्योरी" पुस्तक में आयन रैंड मानती है कि इतिहास के बड़े युद्ध उस समय के अपेक्षाकृत अधिक नियंत्रित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों द्वारा मुक्त (अर्थव्यवस्थाओं) के खिलाफ लड़े गये और उस पूंजीवाद ने मानव जाति को इतिहास में सबसे लंबे समय तक शांति प्रदान की और जिस अवधि में पूरी सभ्य दुनिया की भागीदारी में 1815 में नेपोलियन युद्ध के अंत से 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने तक युद्ध नहीं हुए.

यह याद रखा जाना चाहिए कि उन्नीसवीं सदी की राजनीतिक प्रणालियां शुद्ध पूंजीवादी नहीं थीं, बल्कि मिश्रित अर्थव्यवस्थाओं वाली थीं। हालांकि पूंजीवाद के तत्व का प्रभुत्व था, पर यह पूंजीवाद की एक सदी के उतने ही करीब था, जितना मानव जाति के आने तक था। लेकिन पूरी उन्नीसवीं सदी के दौरान राज्यवाद के तत्व फलते-फूलते रहे और 1914 में पूरी दुनिया में इसके विस्फोट के समय तक शामिल सरकारों पर राज्यवाद की नीतियों का बोलबाला रहा। [7]

हालांकि, इस सिद्धांत ने यूरोप के बाहर के देशों, साथ ही साथ एकीकरण के लिए जर्मनी और इटली में हुए युद्धों, फ्रांको-पर्सियन युद्ध और यूरोप के अन्य संघर्षों के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा छेड़े गये क्रूर औपनिवेशिक युद्धों की अनदेखी की। यह युद्ध के अभाव को शांति के पैमाने के रूप में पेश करता है, जब वास्तविक रूप में वर्ग संघर्ष मौजूद रहा।

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