Pooja ke yogya County Basant Bhag third in Hindi Chapter 2 bus ki yatra
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एक बार लेखक अपने चार मित्रों के साथ बस से जबलपुर जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए अपनी यात्रा बस से शुरु करने का फैसला लेते हैं। परन्तु कुछ लोग उसे इस बस से सफर न करने की सलाह देते हैं। उनकी सलाह न मानते हुए, वे उसी बस से जाते हैं किन्तु बस की हालत देखकर लेखक हंसी में कहते हैं कि बस पूजा के योग्य है।
नाजुक हालत देखकर लेखक की आँखों में बस के प्रति श्रद्धा के भाव आ जाते हैं। इंजन के स्टार्ट होते ही ऐसा लगता है की पूरी बस ही इंजन हो। सीट पर बैठ कर वह सोचता है वह सीट पर बैठा है या सीट उसपर। बस को देखकर वह कहता है ये बस जरूर गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के समय की है क्योंकि बस के सारे पुर्जे एक-दूसरे को असहयोग कर रहे थे।
कुछ समय की यात्रा के बाद बस रुक गई और पता चला कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ऐसी दशा देखकर वह सोचने लगा न जाने कब ब्रेक फेल हो जाए या स्टेयरिंग टूट जाए।आगे पेड़ और झील को देख कर सोचता है न जाने कब टकरा जाए या गोता लगा ले।अचानक बस फिर रुक जाती है। आत्मग्लानि से मनभर उठता है और विचार आता है कि क्यों इस वृद्धा पर सवार हो गए।
इंजन ठीक हो जाने पर बस फिर चल पड़ती है किन्तु इस बार और धीरे चलती है।आगे पुलिया पर पहुँचते ही टायर पंचर हो जाता है। अब तो सब यात्री समय पर पहुँचने की उम्मीद छोड़ देते है तथा चिंता मुक्त होने के लिए हँसी-मजाक करने लगते है।अंत में लेखक डर का त्याग कर आनंद उठाने का प्रयास करते हैं तथा स्वयं को उस बस का एक हिस्सा स्वीकार कर सारे भय मन से निकाल देते
हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है जो जबलपुर की ट्रेन मिला देती है। सुबह घर पहुँच जाएँगे।
लेखक ने वर्णन किया कि वेपाँच मित्र थे।उन्होंने एक कार्यक्रम बनाया कि शाम चार बजे की बस से चलेंगे। ये जो चार बजे की बस है यही उन्हें उनकी मंजिल तक पहुँचने में मदद करेगी। पन्ना (पन्ना जगह का नाम) से ये बस चलने वाली थी । करीबन एक घंटे बाद पन्ना से सतना के लिए उन्हें बस मिलनी थी । लेखक और उनके मित्रों को जबलपुर जाना है इसलिए कुछ यात्रा वो बस से करेंगे उसके बाद जबलपुर के लिए ट्रेन पकडेंगे। यात्रा में पूरी रात का समय लगेगा और वह सुबह के समय तक घर पहुँच जाएँगे।
हम में से दो को सुबह काम पर हाज़िर होना था इसीलिए वापसी का यही रास्ता अपनाना ज़रूरी था। लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफ़र नहीं करते। क्या रास्ते में डाकू मिलते हैं? नहीं, बस डाकिन
लेखक के साथ जो दो मित्र गए थे उन्हें दफ्तर में समय पर उपस्थित होना था। इसलिए वापसी का यही रास्ता अपनाना जरूरी था। उनके जो जानकर लोग थे उन्होंने उन्हें सलाह दी कि अगर कोई समझदार व्यक्ति होगा तो इस शाम को चलने वाली बस से यात्रा करना पसंद नहीं करेगा, क्योंकि शाम के थोड़ी देर बाद काफी अँधेरा हो जाता है और रात के समय में यात्रा करना सुरक्षित नहीं रहता। “क्या रास्ते में डाकू मिलते हैं?” एक प्रष्न किया है लेखक ने। रास्ते में डाकू-वगैरा तो नहीं मिलते लेकिन जो बस की हालत है वो बहुत ही डरावनी है। बस खराब हालत में है, पता नहीं मंजिल पर पहुँचा पाएँगी की नहीं तो लोग हमेशा उस बस से जाने से डरते है।
बस को देखा तो श्रद्धा उमड पड़ी। खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिए हुए थी। लोग इसलिए इससे सफ़र नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा। यह बस पूजा के योग्य थी। उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है!
जिस बस से लेखक को जाना था वह बस बहुत पुरानी थी वह बहुत सालों से चल रही थी लोग उसके द्वारा अपनी अनेक यात्राएँ पूरी कर चुके थे। इस बस को देखने से यह अनुभाव हो रहा था कि इस बस ने बहुत सारी यात्राएँ की हैं, बहुत सारे लोगों को उनकी मंजिल पर पहुँचाया है। उसके निशान इस बस पर साफ दिखाई दे रहे थे। उसके शीशे, खिड़कियाँ, और पूरी बॉडी टूट चुकी थी। कोई भी चीज़ सही ठिकाने पर नहीं थी, घसता हालत हो चुकी थी उसका इंजन आवाज़ कर रहा था। तो इसलिए लोग यात्रा नहीं करना चाहते थे क्योंकि बस बहुत पुरानी हो चुकी थी । उस बस को कुछ परेशानी हो सकती है क्योंकि वह बहुत पुरानी हो चुकी है वृद्ध हो चुकी है। यह बस पूजा के योग्य थी। क्योंकि इसमें बहुत सारे लोगों को अपनी मंजिल पर पहुँचाया था, बहुत ज्यादा सफर तय किया था इसलिए यह बस पूजा के योग्यनीय थी। एक बूढ़ी और पुरानी बस के ऊपर सवार होने का कैसे सोचा जा सकता है जबकि
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