poos ki raat ki kahani apne shabdo me choti krke likhiye
Answers
पूस की रात
कहानी ‘पूस की रात’ में हल्कू के माध्यम से कहानीकार ने भारतीय किसान की लाचारी का यथार्थ चित्रण किया है । बहुत साल पहले की बात है । उत्तर भारत के किसी एक गाँव में हल्कू नामक एक गरीब किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था । किसी की जमीन में खेती करता था । पर आमदानी कुछ भी नहीं थी । उसकी पत्नी खेती करना छोडकर और कहीं मजदूरी करने कहती थी । हल्कू के लगान के तीर पर दूसरों की खेती थी । खेते के मालिक का बकाया था । हल्कू ने अपनी पत्नी से तीन रुपए माँगे । पत्नी ने देने से इनकार किया, ये तीन रुपिए जाडे की रातों से बचने केलिए, कंबल खरीदने के लिये जमा करके रखे थे । मालिक के तगादे और गालियों से डरकर उसने वे तीन रुपिए निकलकर दे दिए । जमिंदार रुपिए लेकर चला गया । पूस मास आ गया । अंधेरी रात थी । कडाके की सर्दी थी । हल्कू अपने खेत के एक किनारे ऊख के पत्तों की छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर पडा था । अपनी पुरानी चादर ओडे ठिठुर रहा था । खाट के नीचे उसका पालतू कुत्ता जबरा पडा कुँ-कूँ कर रहा था । वह भी ठण्ड से ठिठुर रहा था । हल्कू को उसके हालत पर तरस आ रहा था । उसने जबरा से कहा-‘तू अब ठंड खा, मैं क्या करुँ ? यहाँ आने की क्या जरुरत थी ?’ हल्कू बहुत देर तक कुत्ते से बातें करता रहा । जब ठंड के कारण उसे नींद नहीं आई, तब कुत्ते को अपने गोद में सुला लिया । उसके शरीर के गर्मी से हल्कू को सुख मिला । कुछ घण्टे बीत गये । कोई आहट पाकर जबरा उठा और भौंकने लगा । उसे अपने कर्तव्य का मान था । हल्कू के खेत के समीप ही आमों का बाग था । बाग में पत्तियों का ढेर किया, पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड के लाया । उसे सुलगाया और अपने खेत में आकर वहाँ के पत्तियों को भी सुलगाया । हल्कू और कुत्ते दोनों आग तापने लगे । ठंड की असीम शक्ति पर विजय पाकर वह विजय गर्व को ह्रदय में छिपा न सकता था । वह कंबल ओढकर सो जाता है । उसी समय नजदीक में आहट पाकर जबरा भौंकने लगा । कई जानवारों का एक झुण्ड खेत में आया था । शायद नील गायों का झुण्ड था । उनके कूदने-दौडने की आवजें साफ कान में आ रही थी । फिर ऐसा मालूम हुआ कि वे खेत में चर रही हैं । जबरा तो भौंकता रहा । फिर भी हल्कू को उठने का मन नहीं हुआ । जबरा तो भौंकता। था । नील गायें खेत का सफाया किये डालती थी । और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था और धीरे-धीरे चादर ओढकर सो गया । उदर नील गायों ने रात भर चरकर खेती की सारी फसल को बरबाद किया था । सबेरे उसकी नींद खुली । मुन्नी ने उससे कहा-‘...तुम यहाँ आकर रम गये । और उधर सारा खेत सत्य नाश हो गया ।...’ दोनों खेत के पास आ गये । मुन्नी ने उदास होकर कहा-अब मजूरी करके पेट पालना पडेगा । हल्कू ने कहा-‘रात की ठण्ड में यहाँ सोना तो न पडेगा ।’ उसने यह बात बडी प्रसन्नता से कही, उसे ऐसी खेती करने से मजूरी करना बहुत हद तक आरामदायक है । मजूरी करने में झंझट तो नहीं है।