Geography, asked by babitapanchal551, 7 months ago

pप्रदूषण से उत्पन्न कुछ समस्याओं के बारे में बताइए जिन्हें आप अपने आसपास देखते हैं ​

Answers

Answered by alka49
0

Answer:

वातावरण में बढ़ते वायु-प्रदूषण के भयावह दुष्प्रभाव से अब भारत में नाना प्रकार के रोगों के आक्रमण की पदचाप सुनाई देने लगी है। नवजात शिशुओं के आकार और भार में कमी, निर्धारित समय से पूर्व ही जन्म (प्री- मेच्योर बर्थ) और मानसिक विकास में अबोध जैसी समस्यायें भी वायु प्रदूषण के फलस्वरूप बढ़ रही हैं। चिकित्सकों ने चेतावनी दे दी है कि यदि वायु-पूदषण बढ़ता रहा और उसे नियंत्रित न किया गया तो भविष्य में स्थिति अत्यंत भयावह होने वाली है। वायु-प्रदूषण के कारण होने वाली यह नई समस्यायें फेफड़े के सामान्य रोगों, दमा और हृदय रोगों के अतिरिक्त होंगी।

सामान्यतौर पर भारत के छोटे बड़े सभी नगर वायु-प्रदूषण की चपेट में हैं, किन्तु राजधानी दिल्ली की दशा सर्वाधिक चिंतनीय है। दिल्ली में वायु-प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक पाया गया है। विशेषज्ञों का निश्चित मत है कि ऐसा कोई भी कारक जो अंग विकास में बाधक होता है उसका दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु और नवजात शिशुओं पर भी निश्चित रूप से होता है।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ‘‘नवजात शिशुओं में तंत्रिका नलिका (न्यूरल ट्यूब) और रीढ़ रज्जु (स्पाइनल कॉर्ड) का ठीक तरह से निर्माण न हो पाना। चिंतनीय तथ्य यह है कि ऐसा उन माताओं के शिशुओं में भी देखा जाता है जो मातायें आहार में पोषक तत्व लेती रहती हैं तथापि उनके गर्भस्थ भ्रूण प्रभावित होते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य जन्मजात न्यूनताएं भी आम हैं।’’ उपरोक्त विचार डॉ. नीलम क्लेर द्वारा व्यक्त किए गए हैं जो ‘सर गंगाराम हॉस्पिटल’ के नियोनैटोलॉजी विभाग की अध्यक्षा हैं। पिछले दिनों ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की मीटिंग में वायु- प्रदूषण और नवजातों की गड़बड़ियों के पारस्परिक संबंध के विषय में गहन चर्चा की गई थी।

वायु प्रदूषण

‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज’ की रिपोर्ट के अनुसार वायु-प्रदूषण के कारण समय से पूर्व कालकवलित होने वालों की संख्या भारत में छ: लाख बीस हजार तक पहुँच चुकी है। दिल्ली में वायु में सूक्ष्म कणिकीय पदार्थों की अत्यधिक मात्रा होने के कारण ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ तथा अन्य वैश्विक संस्थाओं द्वारा दिल्ली की गणना विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में की गई है।

सर गंगाराम अस्पताल तथा भारत के जन स्वास्थ्य संस्थान (पब्लिक हेल्थ फाउण्डेशन आॅफ इण्डिया) के परस्पर सहयोग से विशेष रूप से उन माताओं के आस-पास की वायु की गुणवत्ता का अध्ययन किया गया जिन्होंने 2007-2012 के बीच शिशुओं को जन्म दिया था। इस अध्ययन को उद्देश्य वायु-प्रदूषण और शिशुओं के भार पर उसके पड़ने वाले दुष्प्रभाव के पारस्परिक संबंध का पता लगाना था।

शिशुओं के अतिरिक्त कम आयु के बालक, वयस्क और वृद्ध लोग भी वायु-प्रदूषण की इस मार को झेल रहे हैं। चिंता का विषय यह है कि इस नगरीय प्रदूषित वायु से स्वास्थ्य को कितना खतरा है इसे भली-भांति समझते हुए भी लोग उसके प्रति उदासीन हैं। सरकार तब भी उदासीन थी जब दिल्ली वासियों को बाहर निकलने के बाद प्रदूषित वायु का स्पर्श होने से आँखों में जलन होने लगती थी और आज भी उदासीन है जब अधिकांश लोग सांस रोगों से आक्रांत हैं। ये सारी स्थितियां भयावह और चिंताजनक तो हैं, परंतु दृढ़ इच्छाशक्ति और सतत प्रयत्न से वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना आज भी असंभव नहीं है। विश्व के अनेक देशों ने अपने यहाँ वायु प्रदूषण को कम करने के उपायों और कानूनों के माध्यम से काफी सफलता प्राप्त की है। वास्तविक आवश्यकता सरकार और आम जनता, दोनों में प्रबल इच्छाशक्ति की है। इस दृष्टि से सर्वप्रथम वायु प्रदूषण के कारकों को समझना बहुत आवश्यक है। ये कारण हैं :

वायु प्रदूषण

1. हरित गृह गैसें, यथा कार्बन डाइआॅक्साइड, मीथेन, काला कार्बन, नाइट्रस आॅक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स।

2. सूक्ष्म कणिकीय पदार्थ, यथा सल्फर डाइआॅक्साइड, नाइट्रोजन के आॅक्साइड्स, उड़नशील/वाष्पीय कार्बन यौगिक, अमोनिया, कार्बन मोनो आॅक्साइड, ओजोन आदि।

3. मोटर एवं अन्य वाहनों से निकला धुआँ, सड़क की धूल, भवन निर्माण का मलबा और हानिकारक रसायन, सूखी पत्तियों के जलने से निकला धुआँ, बेंजीन, भारी धातुएं आदि।

Similar questions