Prabhand Ka vachan badlo
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परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर के प्रबंधन का कार्य संसार की उत्पत्ति से प्रारम्भ हुआ था और मनुष्य उसके कार्य का मुख्य बिन्दु है। ऐसा कह सकते हैं कि परमेश्वर की सभी चीज़ों की सृष्टि, मनुष्य के लिए ही है। क्योंकि उसके प्रबंधन का कार्य हज़ारों सालों से अधिक में फैला हुआ है, और यह केवल एक ही मिनट या सेकंड में या पलक झपकते या एक या दो सालों में पूरा नहीं होता है, उसे मनुष्य के अस्तित्व के लिए बहुत-सी आवश्यक चीज़ों का निर्माण करना पड़ा जैसे सूर्य, चंद्रमा, सभी जीवों का सृजन और मानवजाति के लिए आहार और रहने योग्य पर्यावरण। यही परमेश्वर के प्रबंधन का प्रारम्भ था।
— "केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है" से उद्धृत
परमेश्वर ने जातियों का बंटवारा करने के लिए कौन सा कार्य किया है? पहले तो, उसने विशाल भौगोलिक वातावरण, तैयार किया, और लोगों के लिए अलग-अलग स्थान नियुक्त किये, और फिर पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग वहाँ रहते हैं। यह तय हो चुका है-उनके जीवित रहने के लिए दायरा तय हो चुका है। और उनकी ज़िन्दगियां, जो वे खाते हैं, जो वे पीते हैं, उनकी आजीविका-परमेश्वर ने यह सब बहुत पहले ही तय कर दिया था। और जब परमेश्वर सभी प्राणियों की सृष्टि कर रहा था, उसने अलग-अलग प्रकार के लोगों के लिए अलग-अलग तैयारियां कीः मिट्टी के अलग-अलग घटक, विभिन्न जलवायु, विभिन्न पौधे, और विभिन्न भौगोलिक वातावरण हैं। विभिन्न स्थानों में पक्षी और पशु भी भिन्न-भिन्न हैं, जल के विभिन्न स्रोतों में विशेष प्रकार की मछलियां और जल में उत्पन्न होने वाले उत्पाद हैं। कीड़े-मकोड़ों के किस्मों को भी परमेश्वर के द्वारा निर्धारित किया गया है। …इन विभिन्न पहलुओं की भिन्नताओं को शायद लोगों के द्वारा देखा या महसूस नहीं किया जा सकता है, किन्तु जब परमेश्वर सभी प्राणियों की सृष्टि कर रहा था, तब उसने उनकी रूपरेखा को निरुपित किया और भिन्न-भिन्न जातियों के लिए विभिन्न भौगोलिक वातावरण, विभिन्न भूभागों, और विभिन्न जीवित प्राणियों को तैयार किया था। क्योंकि परमेश्वर ने विभिन्न प्रकार के लोगों का सृजन किया था, और वह जानता है कि उनमें से प्रत्येक की जरूरत क्या है और उनकी जीवनशैलियां क्या हैं।
— "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX" से उद्धृत