Prabhuji Tum Chandan Hum Pani Kavita ka Kendriya Bhav likhiye
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प्रभु जी तुम चंदन हम पानी यह पंक्तियाँ रैदास द्वारा लिखी गई है|
संत रैदास जी कहते है की मेरे मन में राम नाम की जो रट लगी है , अब वह नहीं छूट सकती| रैदास जी ने ईश्वर के प्रति अपनी लग्न को वर्णन किया है |
हे प्रभु आप चन्दन है और मैं पानी , जिसकी सुगंध मेरे अंग-अंग में समा गई है| प्रभु आप इस उपवन के वैभव है और मैं मोर| मेरी दृष्टि आपके ऊपर लगी हुई जैसे चकोर चन्द्रमा की तरफ़ देखता रहता है | उसकी प्रकार मेरा मन भी आप के ऊपर लगा रहता है| आप से अलग रहकर मेरा कोई अस्तित्व नहीं है |
संत रैदास जी कहते है हे ईश्वर आओ दीपक हैं और मैं उस दीप की प्राता हूँ जिसकी ज्योति दिन रात निरंतर जलती रहती है| हे ईश्वर आप मोती हो और मैं उस जल में पिरोया जाने वाली धागा हूँ | ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार सोने और सुहागा के मिलने पर होता है | मैं सदैव आपने निकट ही रहना चाहता हूँ |
संत रैदास जी कहते है हे प्रभु जी आप स्वामी है और मैं आपका दस हूँ | रैदास के मन में ईश्वर के प्रति इसी तरह भक्ति भाव है | संत रैदास जी अपने आप स्वयं ईश्वर का दस समझ बैठे है | ईश्वर के प्रति उनकी अनन्य भक्ति है| जो व्यक्ति ईश्वर के प्रति इस प्रकार का भक्ति रखने है वह लोग इस प्रकार संसार के माया-मोह से मुक्त हो जाते है|
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