pradushan ek samasya pr nibandh
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जैसे-जैसे मनुष्य ने वैज्ञानिक उन्नति की है उसने अपने भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए अनेक छोटे-बड़े कल कारखानों और उद्योगों का विकास लिया है| जनवृद्धि के कारण ग्राम, नगर और महानरों की बनावट को विस्तार देना आरंभ कर दिया है| जंगल काटकर बसने योग्य भूमि तैयार की जा रही है| उत्पादन और सुरक्षा के लिए ऐसी मशीनों का निर्माण कर लिया है जो रात-दिन ध्वनि और धुआँ उगलती रहती है| नदियों पर पुल बाँध रहे हैं| परिवहन की सुविधा मिलने के कारण गाँव के लोग रोजगार की तलाश में नगरों और महानगरों में पलायन करने लगे हैं| यह संक्रमण, एक ओर तो देश को विकास प्रदान करता है पर दूसरी ओर जनस्वास्थ्य में गिरावट ला रहा है|
इन सब से प्रकृति की स्वाभाविक क्रिया में असंतुलन पैदा होने लगा है| जंगलों के बेरोक-टोक कटे जाने से जीव-जन्तु समाप्त हो रहें है| कुछ प्राणी तो संख्या में अँगुलियों पर गिनने लायक रह गए है| प्रकृति का शोधक कारखाना शिथिल पढ़ गया है| हमारे चारों ओर प्रकृति का जो स्वस्थ आवरण है वह दोषपूर्ण हो चला है| इसी को पर्यावरण प्रदुषण की समस्या कहते है|
प्रदुषण की समस्या केवल भारत की ही नहीं अपितु जग की समस्या बनी हुई है| यह वायु-प्रदुषण, जल प्रदुषण और ध्वनि प्रदुषण के रूप में चारों तरफ अपना जाल फैलाती जा रही है| हम दूषित वातावरण में साँस ले रहें हैं| पिने के लिए स्वच्छ जल की कमी होती जा रही है| दूषित जल और जंतुनाशक दवाओं के कारण फसलें भी दूषित हो रही है| आधुनिक यंत्रो का शोर हमारी श्रवण शक्ति कमजोर बना रहें हैं|
वायु प्रदुषण फैलने का मुख्य कारण कारखनों की धुआँ उगलती हुई चिमनियाँ दूर-दूर तक के वातावरण को दूषित कर रही है| जससे साँस और फेफड़ों के रोग पनपते है, आँखे खराब हो जाती है| इसके अतिरिक्त वाहनों से निकलने वाला गन्दा धुआँ हमारे वातावरण को विषैला बनाता जा रहा है| कल कारखानों का दूषित और अनियंत्रित जल-मल बाहर निकलकर बदबूदार गैस फैलाता है| औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाला रासायनिक कूड़ा-कचरा तथा शहर की गटरों का पानी नदियों, झीलों तथा समुद्रों के पानी में विष घोल रहा है| रेलगाड़ियों, विमानों, वाहनों के हार्न, रेडियो, टेपरिकार्ड, दूरदर्शन, लाउडस्पीकरों से निकलने वाली ध्वनियाँ ध्वनि प्रदुषण को बढ़ा रही है|
इस वातावरण में हम एक ओर तो प्रकृति के उपकरणों को बंदी बना रहे है| अत: इससे बचने के लिए प्राकृतिक और मानव निर्मित वातावरण में एक ऐसा तालमेल पैदा करना चाहिए जो प्रकृति के सुन्दर स्वरुप को भी खंडित न करे और मानव विकास की गुंजाईश भी बनी रहे| ग्रामीण जीवन की संपन्नता पर ही बड़े नगरों का जीवन निर्भर है| अत:एव नगर की संस्कृति के साथ-साथ ग्रामीण संस्कृति को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए| दूसरी ओर धुआँ, बदबू और मैल के रूप में विषैली रसायन निकालने वाले कारखानों को बस्तिमसे दूर स्थापित किया जाना चाहिए| प्रत्येक नगर में चिकित्सा, शिक्षा, जलमल निष्कासन की उचित व्यवस्था होनी चहिए| अधिक से अधिक वृक्षारोपण करके इस समस्या को समाप्त तो नहीं लेकिन कम अवश्य किया जा सकता है|
यदि मनुष्य सुखशान्ति से अपना जीवन निर्वाह करना चाहता है तो इस समस्या क दूर करना ही होगा| इसके लिए जनजीवन में जागरूकता उत्पन्न करनी होगी व जनसंख्या वृद्धि की दर को भी कम करना होगा तभी प्रदुषण की समस्या से बचा जा सकता है|
इन सब से प्रकृति की स्वाभाविक क्रिया में असंतुलन पैदा होने लगा है| जंगलों के बेरोक-टोक कटे जाने से जीव-जन्तु समाप्त हो रहें है| कुछ प्राणी तो संख्या में अँगुलियों पर गिनने लायक रह गए है| प्रकृति का शोधक कारखाना शिथिल पढ़ गया है| हमारे चारों ओर प्रकृति का जो स्वस्थ आवरण है वह दोषपूर्ण हो चला है| इसी को पर्यावरण प्रदुषण की समस्या कहते है|
प्रदुषण की समस्या केवल भारत की ही नहीं अपितु जग की समस्या बनी हुई है| यह वायु-प्रदुषण, जल प्रदुषण और ध्वनि प्रदुषण के रूप में चारों तरफ अपना जाल फैलाती जा रही है| हम दूषित वातावरण में साँस ले रहें हैं| पिने के लिए स्वच्छ जल की कमी होती जा रही है| दूषित जल और जंतुनाशक दवाओं के कारण फसलें भी दूषित हो रही है| आधुनिक यंत्रो का शोर हमारी श्रवण शक्ति कमजोर बना रहें हैं|
वायु प्रदुषण फैलने का मुख्य कारण कारखनों की धुआँ उगलती हुई चिमनियाँ दूर-दूर तक के वातावरण को दूषित कर रही है| जससे साँस और फेफड़ों के रोग पनपते है, आँखे खराब हो जाती है| इसके अतिरिक्त वाहनों से निकलने वाला गन्दा धुआँ हमारे वातावरण को विषैला बनाता जा रहा है| कल कारखानों का दूषित और अनियंत्रित जल-मल बाहर निकलकर बदबूदार गैस फैलाता है| औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाला रासायनिक कूड़ा-कचरा तथा शहर की गटरों का पानी नदियों, झीलों तथा समुद्रों के पानी में विष घोल रहा है| रेलगाड़ियों, विमानों, वाहनों के हार्न, रेडियो, टेपरिकार्ड, दूरदर्शन, लाउडस्पीकरों से निकलने वाली ध्वनियाँ ध्वनि प्रदुषण को बढ़ा रही है|
इस वातावरण में हम एक ओर तो प्रकृति के उपकरणों को बंदी बना रहे है| अत: इससे बचने के लिए प्राकृतिक और मानव निर्मित वातावरण में एक ऐसा तालमेल पैदा करना चाहिए जो प्रकृति के सुन्दर स्वरुप को भी खंडित न करे और मानव विकास की गुंजाईश भी बनी रहे| ग्रामीण जीवन की संपन्नता पर ही बड़े नगरों का जीवन निर्भर है| अत:एव नगर की संस्कृति के साथ-साथ ग्रामीण संस्कृति को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए| दूसरी ओर धुआँ, बदबू और मैल के रूप में विषैली रसायन निकालने वाले कारखानों को बस्तिमसे दूर स्थापित किया जाना चाहिए| प्रत्येक नगर में चिकित्सा, शिक्षा, जलमल निष्कासन की उचित व्यवस्था होनी चहिए| अधिक से अधिक वृक्षारोपण करके इस समस्या को समाप्त तो नहीं लेकिन कम अवश्य किया जा सकता है|
यदि मनुष्य सुखशान्ति से अपना जीवन निर्वाह करना चाहता है तो इस समस्या क दूर करना ही होगा| इसके लिए जनजीवन में जागरूकता उत्पन्न करनी होगी व जनसंख्या वृद्धि की दर को भी कम करना होगा तभी प्रदुषण की समस्या से बचा जा सकता है|
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Pradushan Hamare desh ki badhti ek bdi samasya hai. Iska mukhya Karan hai badhata population. To jarrorat hai aaj apne surrounding me safai krne ki Aur dheere dheere apne desh ko apne swacch banana hai.
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