pradushan ke karan evam nivaran pr nibandh
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प्रदूषण का खतरा अत्यंत गंभीर समस्याओं में से एक है जिनका की विश्व प्रत्येक गुजरते दिन का आज सामना कर रहा है। प्रत्येक दिन के बीतते हमारा वातावरण बराबर और अधिक प्रदूषित होता जा रहा है। प्रकृति ने हमें ऐसा वातावरण प्रदान किया है जो प्रदूषण कारक तत्वों से मुक्त है किंतु मानव अपने जीवन को चलाने वाले वातावरण को प्रदूषित करके अपने साथ ही निर्दयता कर दी है। सामान्य रूप से वातावरण प्रदूषण तीन प्रकार से होता है : (1) वायु प्रदूषण¸ (2) जल प्रदूषण और (3) ध्वनि प्रदूषण।
हमारी हवा फैक्ट्रियों की चिमनियों से¸ स्वचालित सवारियों से निकले धुएं एवं महाशक्तियों द्वारा किए गए नाभिकीय विस्फोटों से बराबर दूषित की जा रही है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा हद से ज्यादा बढ़ती जा रही है मेट्रोपोलिटन नगरों में जहां पर यंत्रीकृत परिवहन भयावह चरणों में पहुंच चुका है वहां पर तो प्रदूषण का खतरा बहुत ही बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त ज्यों-ज्यों औद्योगिकरण बढ़ता जा रहा है हमारे वातावरण को खतरा भी बढ़ता जा रहा है। औद्योगिक नगरों में तो पूर्व से ही वायुमंडल में कार्बन बहुत पहुँच चुका है और ताजा हवा मिलना दुर्लभ हो गई है। इससे स्वास्थ्य को भी गंभीर खतरे उत्पन्न हो गए हैं। लोग विभिन्न प्रकार के रोगों के शिकार बन रहे हैं विशेषकर फेफड़ों से सम्बन्धित रोगों में कैंसर का विस्तार बढ़ता ही जा रहा है।
जल प्रदूषण के कारण स्थिति और अधिक गंभीर हो गई है। नदी का पानी तो पीने लायक रह ही न हीं गया है कारण फैक्टरियों से निकले कूड़े करकट को नदी में बहाना है। बहुत-से स्थानों से तो मछलियाँ पूरी तरह से गायब हो गयी हैं जिसका कारण नदी के पानी में जहरीले पदार्थों का मिश्रण हो जाना है। इन खाद्य पदार्थों के अच्छे स्त्रोत का ही खात्मा नहीं हो गया है अपितु इसने पारिस्थिति की संतुलन को भी बिगाड़ दिया है। बड़े औद्योगीकृत नगरों में लोगों को ताजा और शुद्ध जल मुश्किल से ही मिल पाता है। जल को शुद्ध करने की क्रिया से दूषित जल को एक सीमा तक ही शुद्ध किया जा सकता है। उसके परे जल को पीने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है।
वृहद स्तर पर वनों के काटे जाने से और अधिक गंभीर परिणामों को जन्म मिला है। वनों के कटाव ने प्रकृति के वातावरण को अपने ही उपायों द्वारा शुद्ध करने की क्षमता पर गहरी चोट की है। वनों के कटाव ने जंगली जीव जंतुओं का विनाश किया है। इस प्रकार आधुनिक मनुष्य उन वनस्पति और जीव जंतुओं का कट्टर शत्रु बन कर प्रकट हुआ है जिनकी पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
हमारी हवा फैक्ट्रियों की चिमनियों से¸ स्वचालित सवारियों से निकले धुएं एवं महाशक्तियों द्वारा किए गए नाभिकीय विस्फोटों से बराबर दूषित की जा रही है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा हद से ज्यादा बढ़ती जा रही है मेट्रोपोलिटन नगरों में जहां पर यंत्रीकृत परिवहन भयावह चरणों में पहुंच चुका है वहां पर तो प्रदूषण का खतरा बहुत ही बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त ज्यों-ज्यों औद्योगिकरण बढ़ता जा रहा है हमारे वातावरण को खतरा भी बढ़ता जा रहा है। औद्योगिक नगरों में तो पूर्व से ही वायुमंडल में कार्बन बहुत पहुँच चुका है और ताजा हवा मिलना दुर्लभ हो गई है। इससे स्वास्थ्य को भी गंभीर खतरे उत्पन्न हो गए हैं। लोग विभिन्न प्रकार के रोगों के शिकार बन रहे हैं विशेषकर फेफड़ों से सम्बन्धित रोगों में कैंसर का विस्तार बढ़ता ही जा रहा है।
जल प्रदूषण के कारण स्थिति और अधिक गंभीर हो गई है। नदी का पानी तो पीने लायक रह ही न हीं गया है कारण फैक्टरियों से निकले कूड़े करकट को नदी में बहाना है। बहुत-से स्थानों से तो मछलियाँ पूरी तरह से गायब हो गयी हैं जिसका कारण नदी के पानी में जहरीले पदार्थों का मिश्रण हो जाना है। इन खाद्य पदार्थों के अच्छे स्त्रोत का ही खात्मा नहीं हो गया है अपितु इसने पारिस्थिति की संतुलन को भी बिगाड़ दिया है। बड़े औद्योगीकृत नगरों में लोगों को ताजा और शुद्ध जल मुश्किल से ही मिल पाता है। जल को शुद्ध करने की क्रिया से दूषित जल को एक सीमा तक ही शुद्ध किया जा सकता है। उसके परे जल को पीने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है।
वृहद स्तर पर वनों के काटे जाने से और अधिक गंभीर परिणामों को जन्म मिला है। वनों के कटाव ने प्रकृति के वातावरण को अपने ही उपायों द्वारा शुद्ध करने की क्षमता पर गहरी चोट की है। वनों के कटाव ने जंगली जीव जंतुओं का विनाश किया है। इस प्रकार आधुनिक मनुष्य उन वनस्पति और जीव जंतुओं का कट्टर शत्रु बन कर प्रकट हुआ है जिनकी पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
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