pragati se tatparya par nibandh
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it's too long
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प्रगति का अर्थ किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में आगे बढ़ना है । इस प्रकार इसका अर्थ उद्विकास से संकीर्ण है । मोटे रूप में उस परिवर्तन को प्रगति कहा जा सकता है जिससे किसी व्यक्ति संस्था अथवा समूह के जीवन में सहायता मिले क्योंकि जीवित रहना यद्यपि सर्वोच्च नहीं परन्तु सर्वप्रथम और अनिवार्य मूल्य है ।
प्रगति का शाब्दिक अर्थ किसी लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना है या केवल आगे बढ़ना है । परन्तु आगे बढ़ना या पीछे हटना प्रगति या अवनति सापेक्षिक शब्द है । यदि यह कहा जाय कि यह देश आगे बढ़ा तो इस बात का तब तक कोई अर्थ समझ में नहीं आ सकता जब तक यह न मालूम हो कि किस तरफ आगे बढ़ा अथवा उसने किस मूल्य या लक्ष्य को प्राप्त करने में प्रगति की ।
इस प्रकार प्रगति केवल परिवर्तन मात्र नहीं है । वह किसी विशेष दिशा में परिवर्तन है । प्रत्येक दिशा में परिवर्तन को प्रगति नहीं कहा जा सकता । उदाहरण के लिये यदि किसी देश में खेती की दशा खराब हो गई और अकाल पड़ गया तो यह परिवर्तन तो हुआ परन्तु इसे प्रगति कोई नहीं कहेगा ।
अतः प्रगति का अर्थ किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में आगे बढ़ना है । इस प्रकार इसका अर्थ उद्विकास से संकीर्ण है । मोटे रूप में उस परिवर्तन को प्रगति कहा जा सकता है जिससे किसी व्यक्ति संस्था अथवा समूह के जीवन में सहायता मिले क्योंकि जीवित रहना यद्यपि सर्वोच्च नहीं परन्तु सर्वप्रथम और अनिवार्य मूल्य है । जब जीवन ही नहीं रहा तब फिर मूल्य किस का और कैसा ? अतः प्रगति का नाम पाने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक परिवर्तन को कम से कम जीवनदायक तो होना ही चाहिये ।
ये सामाजिक मूल्य बदलते रहते है परन्तु इनके बदलने की गति बहुत मन्द होती है और बहुत से मूल्यों में तो सैकड़ों सालों में भी बहुत कम अन्तर पड़ता है । अत: उस सीमा तक प्रगति का विचार स्थिर रहता है । अत: यह स्पष्ट है कि प्रगति का विचार सामाजिक मूल्यों से निर्धारित होता है ।
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Suhani
xx
प्रगति का शाब्दिक अर्थ किसी लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना है या केवल आगे बढ़ना है । परन्तु आगे बढ़ना या पीछे हटना प्रगति या अवनति सापेक्षिक शब्द है । यदि यह कहा जाय कि यह देश आगे बढ़ा तो इस बात का तब तक कोई अर्थ समझ में नहीं आ सकता जब तक यह न मालूम हो कि किस तरफ आगे बढ़ा अथवा उसने किस मूल्य या लक्ष्य को प्राप्त करने में प्रगति की ।
इस प्रकार प्रगति केवल परिवर्तन मात्र नहीं है । वह किसी विशेष दिशा में परिवर्तन है । प्रत्येक दिशा में परिवर्तन को प्रगति नहीं कहा जा सकता । उदाहरण के लिये यदि किसी देश में खेती की दशा खराब हो गई और अकाल पड़ गया तो यह परिवर्तन तो हुआ परन्तु इसे प्रगति कोई नहीं कहेगा ।
अतः प्रगति का अर्थ किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में आगे बढ़ना है । इस प्रकार इसका अर्थ उद्विकास से संकीर्ण है । मोटे रूप में उस परिवर्तन को प्रगति कहा जा सकता है जिससे किसी व्यक्ति संस्था अथवा समूह के जीवन में सहायता मिले क्योंकि जीवित रहना यद्यपि सर्वोच्च नहीं परन्तु सर्वप्रथम और अनिवार्य मूल्य है । जब जीवन ही नहीं रहा तब फिर मूल्य किस का और कैसा ? अतः प्रगति का नाम पाने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक परिवर्तन को कम से कम जीवनदायक तो होना ही चाहिये ।
ये सामाजिक मूल्य बदलते रहते है परन्तु इनके बदलने की गति बहुत मन्द होती है और बहुत से मूल्यों में तो सैकड़ों सालों में भी बहुत कम अन्तर पड़ता है । अत: उस सीमा तक प्रगति का विचार स्थिर रहता है । अत: यह स्पष्ट है कि प्रगति का विचार सामाजिक मूल्यों से निर्धारित होता है ।
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