prakartik sansadhano main paryukt adhunik vidhiyo ka varnan
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प्राकृतिक संसाधन वो प्राकृतिक पदार्थ हैं जो अपने अपक्षक्रित (?) मूल प्राकृतिक रूप में मूल्यवान माने जाते हैं। एक प्राकृतिक संसाधन का मूल्य इस बात पर निर्भर करता है की कितना पदार्थ उपलब्ध है और उसकी माँग (demand) कितनी है। प्राकृतिक संसाधन दो तरह के होते हैं-
नवीकरणीय संसाधन औरअनवीकरणीय संसाधन (Non-renewable)।प्राकृतिक संसाधन वह प्राकृतिक पूँजी (natural capital) है जो निवेश की वस्तु में बदल कर बुनियादी पूंजी (infrastructural capital) प्रक्रियाओं में लगाई जाती है।[1][2] इनमें शामिल हैं मिट्टी, लकड़ी, तेल, खनिज और अन्य पदार्थ जो कम या ज़्यादा धरती से ही लिए जाते हैं। बुनियादी संसाधन के दोनों निष्कर्षण शोधन(refining) करके ज़्यादा शुद्ध रूप में बदले जाते हैं जिन्हें सीधे तौर पर इस्तेमाल किया जा सके, (जैसे धातुएँ, रिफाईंड तेल) इन्हें आम तौर पर प्राकृतिक संसाधन गतिविधियाँ माना जाता है, हालांकि ज़रूरी नहीं की बाद में हासिल पदार्थ, पहले वाले जैसा ही लगे।
एक राष्ट्र के राजनीतिक प्रभाव को तय करते हुए, उस देश के प्राकृतिक संसाधन अक्सर वैश्विक आर्थिक प्रणाली में उसकी संपत्ति का निर्धारण करते हैं। विकसित राष्ट्र (Developed nations) वे कहलाते हैं जिनकी निर्भरता कुदरती संसाधनों पर कम होती है, क्योंकि उत्पादन हेतु वे बुनियादी पूंजी अधिक निर्भर करते हैं। लेकिन, कुछ लोग एक संसाधन विपदा (resource curse) की सम्भावना देखते हैं, जहां आसानी से प्राप्त होने वाले कुदरती संसाधनों की वजह से राजनैतिक भ्रष्टाचार पनपता है जो उस राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के भविष्य पर चोट करता है। राजनीतिक भ्रष्टाचार राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है क्योंकि आर्थिक रूप से लाभदायक कार्यो की बजाय कीमती समय अन्य अनुत्पादक कामों में नष्ट होता है। ज़मीन के जो हिस्से प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हैं उनपर मालिकाना हक रखने की प्रवृत्ति भी देखने में आती है।
हाल के वर्षों में प्राकृतिक पूँजी का ह्रास तथा दीर्घकालिक विकास की ओर स्थानांतरण विकास एजेंसियों (development agencies) का ज़्यादा ध्यान रहा है। वर्षा वन (rainforest) प्रदेशो में यह विशेष चिंता का विषय है क्योंकि यहाँ पर पृथ्वी की सबसे अधिक जैव विविधता होती है और इस जैविक प्राकृतिक पूंजी की जगह कोई नहीं ले सकता.प्राकृतिक पूँजीवाद (natural capitalism), पर्यावरणवाद (environmentalism), पारिस्थितिकी आंदोलन (ecology movement) तथा ग्रीन पार्टियों (Green Parties) का ध्यान सबसे अधिक प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर है। कुछ लोग इस ह्रास को विकासशील राष्ट्रों में सामाजिक अशांति एवं संघर्ष के प्रमुख कारण के रूप में देखते हैं।