Prakriti dwara Sikh dene wali kahani
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एक ऐसे छात्र की कहानी है, जिसकी मां ने सिलाई का काम कर बच्चे को स्कूल भेजना शुरू किया था। घर में बिजली नहीं थी। दीये की रोशनी में पुरानी किताबों से पढ़ाई कर वह आईआईटी तक कैसे पहुंचा, बता रहे हैं सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार...
पटना के बाहरी इलाके में एक कमरे के घर में अशोक कुमार का परिवार रहता था। अशोक का खूब पढ़ने का ख्वाब गरीबी की वजह से बीज रूप में ही रह गया, कभी वृक्ष नहीं बना। मेहनत-मजदूरी की। शादी हुई। बच्चे हो गए। अब यही समस्या बेटे अमन को पढ़ाने के मामले में भी आई।
बेटे की पढ़ाई की मंशा को जिंदा रखने के लिए माया ने सिलाई का काम शुरू किया। थोड़ी-बहुत कमाई से पुरानी किताबों का इंतजाम हो गया। अमन स्कूल जाने लगा। बिजली नहीं थी। अंधेरी रातों में दीया जलाकर चल पड़ा अपने लक्ष्य की ओर। अमन बड़ा हुआ। पढ़ाई में लगन और मेहनत भी बढ़ाता गया।
उसे याद है, जब वह छठवीं में आया तब निजी अस्पताल में सफाई का काम करने वाले उसके पिता की आय समेत पूरे घर की आमदनी कुल एक हजार रुपया थी! रात दीये की रोशनी में अमन को पढ़ता देख मायादेवी ईश्वर से एक ही कामना करती, अमन जीवन की ऊंचाइयां छुए। त्योहार के दिन आते तो मोहल्ले के बच्चे नए कपड़े पहनते, मगर उनके पास कुछ भी नया नहीं होता। दूसरे बच्चों के उपहास का पात्र बनने वाला अमन मां से अपना दुखड़ा रोता। मां एक ही सीख देती, पढ़ो तो सब कुछ अच्छा हो जाएगा। इस संघर्ष में बिना किसी टयूशन के अमन ने दसवीं पास की।
सब लगे थे गपशप में, अमन से पढ़ रहा था अमन
उन्हीं दिनों सुपर 30 के कुछ सफल बच्चों के टीवी पर इंटरव्यू देखे। सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार बताते हैं कि मां के साथ दुबला-पतला अमन एक दिन मेरे सामने आया। उसकी मां ने अपने परिवार की दशा सुनाई। कुछ कर गुजरने की ललक उसकी आंखों में साफ थी। अमन को मैंने अपने पास रखा। एक शाम मैंने देखा कि बच्चे गपशप में मशगूल थे, मगर अमन चुपचाप सुबह से पढ़ाई में खोया था। मैंने उसे आराम करने को कहा तो झट से आंसू उसकी आंखों में झलक आए। उसे फिक्र यह थी कि मां ने उसके बारे में जो सोचा है, उसे पूरा करने का जिम्मा अब सिर्फ उसका है। पढ़-लिखकर कुछ बनने का सपना। वह आराम नहीं कर सकता था। आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की घड़ी गई। वह आशीर्वाद लेने आया। मैंने पूछा, क्या हाल हैं? वह बोला, आपका शिष्य हूं, निराश नहीं करूंगा। अच्छी रैंक लाऊंगा। गहरे आत्मविश्वास से वह निकला। यही वे पल थे, जिसके लिए उसने महीनों मेहनत में खपा दिए थे। तब उसके पिता जलपाईगुड़ी में रेलवे की ट्रॉली खींचने और गिट्टी डालने का काम पा चुके थे।
नौकरी मलते ही मां के लिए बनाएगा घर
आज उस बात को दो साल बीत गए। मायादेवी का प्रिय पुत्र अमन अब आईआईटी रुड़की में दूसरे साल की पढ़ाई में जुटा है। तीन दिन पहले ही मिलने आया था। हर बार पटना आने पर वह बिना मिले नहीं गुजरता। इस बार मैंने पूछा, अमन अब तुम्हारा अगला क्या सपना है? शर्माते हुए उसने जवाब दिया, पढ़ाई पूरी करने के बाद जैसे ही नौकरी मिलेगी और हाथ में कुछ पैसा आएगा, सबसे पहले मां के लिए एक अच्छा सा घर बनवाना चाहता हूं।
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